राज्य सरकार पर नौकरशाही के जाल का ताना-बाना अब और भी मजबूत हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं पूरी सरकार नौकरशाही पर निर्भर हो गई है। अधिकांश निर्णय नौकरशाही की सहमति से हो रहे हैं। यहां तक कि पार्टी के बड़े नेता भी कहने लगे हैं कि नौकरशाही उनकी बात नहीं सुनते हैं और सरकार के मुखिया जो कहते हैं वहीं हो रहा है।
भोपाल। नौकर शाही के सरकार पर हावी होने की शिकायतें जनता के साथ-साथ विधायक और मंत्री भी करते रहते हैं। जबकि अधिकारी मुख्यमंत्री के अतिरिक्त अधिकांश जनप्रतिनिधियों को नजरअंदाज करते रहते हैं। वहीं जनप्रतिनिधियों का आारोप है कि सूबे में अफसरशाही की करतूतें सरकार पर भी हावी हैं। प्रदेश में ऊंचे ओहदों पर बैठे अधिकांश अफसर दागी हैं। लोकायुक्त और आर्थिक अपराध ब्यूरो ने इनकी जांच भी पूरी कर ली है, लेकिन विधि विभाग ने इनके अभियोजन की अनुमति नहीं दी है। जिसके चलते इन भ्रष्ट अफसरों के मामले न्यायालय की दहलीज तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। व्यवस्था संभालने के लिए जो अधिकारी हैं वे खुद व्यवस्था को डस रहे हैं
इन अफसरों पर सिर्फ भ्रष्टाचार ही नहीं ठगी, झूठे मामले में फंसाने, जमीनें हड़पने और जान से मारने की धमकी देने जैसे संगीन मामले हैं। इसके बावजूद शासन दागी अफसरों की फाइलों पर कुंडली मार कर बैठा है। कई मामलों में जांच पूरी हुए तीन से चार साल हो चुके हैं, लेकिन अफसरों की सांठगांठ के चलते मामलों में अभियोजन की अनुमति नहीं मिल रही है। इनमें वरिष्ठ आईएएस अफसर शामिल हैं। कई अफसर तो ऐसे हैं जिनके विरूद्ध मामले अदालत तक पहुंचे ही नहीं और वे सेवानिवृत्त हो गए।
कलेक्टरों की कारगुजारियां:
अधिकांश आईएएस अफसरों के दामन कलेक्टरी के दौरान ही दागदार हो गए। सरकार ने भी भ्रष्टाचार से घिरे इन अफसरों पर नकेल कसने के बजाय इन्हें प्रमोशन देकर प्रोत्साहित किया। इनमें से ज्यादातर अफसर अब सचिव स्तर के पदों पर विराजित हैं और कई महत्वपूर्ण विभागों की बागडोर इनके हाथों में हैं। इन्होंने सरकारी खरीदी, जमीन आवंटन और नियुक्तियों में अनियमितताएं की हैं।
निगमायुक्त भी कटघरे में:
पूर्व आईएएस और भोपाल नगर निगम में आयुक्त रहे एमए खान पर आर्थिक अनियमितताओं के करीब आधा दर्जन मामले दर्ज हैं। जब तक वे नौकरी में रहे तब तक कोई भी जांच एजेंसी उन पर हाथ डालने से कांपती रही। लेकिन जिस दिन खान रिटायर हुए उसी दिन उन पर यह मामले दर्ज कर लिए गए। उनकी सेवानिवृत्ति और मामले दर्ज होने की तारीख 31 मार्च 2009 है। उन्होंने नादरा बस स्टैण्ड की छत पर दुकानों के आवंटन, लखेरापुरा में 2475 वर्गफीट भूमि नियम विरूद्ध आवंटन, हर्षवर्धन नगर में प्लॉट के आवंटन, न्यू मार्केट में दुकानों के आवंटन, होशंगाबाद रोड में 4000 वर्गफीट प्लॉट के आवंटन, 10 नंबर व हरिशंकर मार्केट,बिट्टन मार्केट में अवैध रूप से जगह का आवंटन, हलालपुरा में करीब 4 एकड़ जमीन का गलत तरीके से अधिग्रहण कर शासन को आर्थिक हानि पहुंचाने के आरोप हैं। इन मामलों में जांच एजेंसियों की तफ्तीश तीन साल बाद भी अधूरी है। इसी तरह पूर्व आईएएस महेंद्र सिंह भिलाला 2009 में सेवानिवृत्त हुए और इसी साल उन पर जिला पंचायत बैतूल और श्योपुर कलेक्टर रहते हुए पटवारी चयन परीक्षा व कृषि यंत्र खरीदने के मामले में भ्रष्टाचार करने का मामला कायम किया गया।
मनरेगा में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार:
प्रदेश के सर्वाधिक अफसर मनरेगा में अनियमितताओं के मामले में फंसे हैं। जिनकी जांच चल रही है। कुछ के मामले में जांच पूरी हो गई हैं और अभियोजन की अनुमति मांगी गई है। मनरेगा में फंसे आईएएस अफसरों में भोपाल कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव, मनीष रस्तोगी, विवेक पोरवाल, संजय गोयल, केपी राही, सैयद सुहैल अली, बीएस शर्मा आदि प्रमुख नाम हैं। जिन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नाम पर करोड़ों रूपये की अनियमितता की है।
आईएएस अफसर और भ्रष्टाचार के दर्ज मामले:
आईएएस - आरोप
एमएस मूर्ति - ईओडब्ल्यू में चर्म विकास निगम में करोड़ों की राशि के गबन का मामला दर्ज।
एसआर मोहंती - एमपीएसआईडी का प्रबंध संचालक रहते हुए प्रतिबंध के बावजूद 33 कंपनियों को 719 करोड़ रूपए का टर्म लोन बांटा।
संजय शुक्ला - इंदौर नगर निगमायुक्त रहते हुए बख्तावर राम नगर में स्वीकृत मानचित्र के वितरीत भूखण्ड काटकर विक्रय करने का आरोप।
मुक्तेश वाष्र्णेय - बंदोबस्त आयुक्त और सक्षम अधिकारी रहते हुए शिवपुरी शहर से लगी 1500 बीघा जमीन के पंजीयन शुल्क में करोड़ों की हेराफेरी के आरोप में प्रकरण दर्ज।
केके खरे - अपर कलेक्टर रहते हुए सज्जन मिल्स रतलाम की लीज की जमीन के विक्रय में अनियमितता।
एमएम उपाध्याय - प्रमुख सचिव राजस्व विभाग रहते हुए ऋण पुस्तकों के वितरण में अनियमितता।
योगेंद्र कुमार शर्मा - विदिशा कलेक्टर रहते हुए शराब दुकान बंद कराने और लायसेंस रद्द करने के नाम पर अवैध वसूली का आरोप।
अरविंद जोशी - प्रमुख सचिव, जल संसाधन रहते हुए आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करना।
आशीष श्रीवास्तव - प्रबंध संचालक औद्योगिक केंद्र विकास निगम रहते हुए विकास कार्यों के लिए मिली राशि से ऋण चुकता करने का आरोप।
संजय गोयल - सीईओ जिला पंचायत खंडवा रहते हुए रोजगार गारंटी योजना के तहत ग्राम पंचायत में 100 करोड़ की अनियमितता का आरोप।
शिवशेखर शुक्ला - कलेक्टर व अध्यक्ष राष्ट्रीय बाल श्रम योजना उज्जैन रहते हुए अजा व जजा के छात्रों को प्रशिक्षण देने मिली 8 करोड़ रूपये की राशि के दुरूपयोग का आरोप।
प्रमोद अग्रवाल - एकेवीएन का प्रबंध संचालक रहते हुए अवैध तरीके से नियुक्तियां देने का आरोप।
निकुंज श्रीवास्तव - कलेक्टर खण्डवा रहते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए शासन से आवंटित करोड़ों की राशि में घोटाले का आरोप।
एसपी गुप्ता - फर्जी ऋण प्रकरणों में लाखों रूपए के अनुदान स्वीकृत करना व आपराधिक षडय़ंत्र रचने का आरोप।
पंकज अग्रवाल - पूर्व क्षेत्र विद्युत कंपनी के सीएमडी के पद पर रहते हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार का आरोप।
वीए कुरील - कलेक्टर उमरिया रहते हुए आदिवासी विकास के लिए मिली राशि में अनियमितता का आरोप।
मनीष रस्तोगी - कलेक्टर सतना रहते हुए रोजगार गारंटी योजना के तहत 10 करोड़ रूपए का फर्जी भुगतान व बंदरबांट का आरोप।
विवेक पोरवाल - सीईओ जिला पंचायत सतना रहते हुए रोजगार गारंटी योजना के तहत 10 करोड़ रूपय का फर्जी भुगतान व बंदरबांट का आरोप।
एसके मिश्रा - कलेक्टर रीवा रहते हुए मिट्टी तेल आवंटन एवं वितरण में अनियमितता।
योगेंद्र मिश्रा - प्रबंध संचालक सहकारिता रहते हुए विवादित भूमियों का विक्रय।
केपी राही - कलेक्टर टीकमगढ़ रहे हुए फोटोकापी मशीन व कम्प्यूटरों की खरीद में गड़बड़ी का आरोप प्रकरण दर्ज।
सै0सुहैल अली - भिण्ड कलेक्टर रहते हुए खरीदी में आर्थिक अनियमितता के आरोप।
डॉ0 संजय गोयल - अनुविभागीय अधिकारी नरसिंहगढ़ जिला राजगढ़ रहते हुए प्रकरणों में अनियमितता का आरोप।
डॉ0 नवनीत मोहन - देवास कलेक्टर रहते हुए चुनाव के दौरान गड़बड़ी करने का आरोप।
विनोद कटेला - आयुक्त जबलपुर रहते हुए नियम विरूद्व आदेश पारित करने का आरोप।
बीएम शर्मा - सीईओ जिला पंचायत रहते हुए नरेगा के तहत औजारों की खरीद में गड़बड़ी का आरोप।
राजेश प्रसाद - मंत्रालय में शिष्टाचार अधिकारी रहते हुए आर्थिक अनियमितता करना।
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