कुछ सालों से प्रदेश में लगभग हर साल आई प्राकृतिक आपदा और शासन की अव्यवस्था के कारण कृषि व्यवसाय चौपट हो गया है और किसान लगातार कर्ज में डूबता जा रहा है। इससे पहले लिए गए ऋणों की वसूली नहीं होने पर सरकार ने इन्हें कालातीत ऋणों की सूची में डाल दिया, लेकिन वसूली की उम्मीद नहीं छोड़ी। इन सभी तरह के ऋणों की वसूली के लिए सरकार ने गेहूं उपार्जन को कम्प्यूटराइज्ड कर ई-रिकवरी का तरीका खोजा है।
भोपाल। किसी न किसी भंवर जाल में फंसे रहना प्रदेश के किसानों की नियति सी बन गई है। खाद,बीज,बिजली,पानी की समस्या आम हाने से कृषि लगातार घाटे का सौदा साबित हो रही है। प्रदेश के किसान करीब 4,000 करोड़ रूपये से ज्यादा के कर्जदार हैं। यह आंकड़ा वित्तीय वर्ष 2010-11 का है। यह कर्ज किसानों ने जिला सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों से लिया है। इसके अलावा किसानों को करीब 231 करोड़ रूपये सिंचाई विभाग के भी चुकाने हैं। किसानों ने सहकारिता ऋण खाद, बीज के लिए लिया, तो सिंचाई विभाग से ऋण पानी के लिए। बिजली का बिल भी कई किसानों ने नहीं चुकाया, लिहाजा बिजली बिलों के करोड़ों भी बकाया है। फलत: राज्य सरकार ने कर्ज माफी का जो लुभावना सपना दिखाया था वह भी फ्लॉप साबित हुआ है।
15 मार्च से शुरू हो चुकी उपार्जन की प्रक्रिया के दौरान किसानों से इन ऋणों की वसूली की जाने लगी है। कई स्थानों पर किसानों से कर्ज वसूला जा रहा है जिसका किसान विरोध भी कर रहे हैं। हालांकि सरकार का कहना है कि किसान की सहमति के बाद कर्ज की राशि काटी जाएगी, लेकिन सूत्र बताते हैं थोड़ी-बहुत राशि तो चुकाना ही होगी। बीते साल के आखिर में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विधायक रणवीर सिंह जाटव के एक सवाल के जवाब में सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने प्रदेश की 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों तथा जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों की मांग, वसूली और कालातीत ऋणों की जानकारी दी थी। इस जानकारी के मुताबिक वर्ष 2010-11 में मात्र 38 जिलों में ही मांग और वसूली में 30,040 करोड़ का अंतर है।
ऐसी है किसानों से हमदर्दी:-
ग्वालियर जिले के उर्वा में 14 जनवरी को फर्जी ऋण का ताजा मामला सामने आया। किसान हुकुम सिंह जाट को पता ही नहीं चला और वह जिला सहकारी केंद्रीय बैंक से संबद्ध साख समिति के 81,290 रूपये का कर्जदार हो गया। नोड्यूज करवाया तब जानकारी मिली। जाट ने कलेक्टर, आईजी व एसपी को दिए आवेदन में बताया कि उसने कभी समिति से राशि नहीं निकाली और न खाद खरीदा। जमीन व टे्रक्टर 10 साल से स्टेट बैंक ऑफ इंदौर में बंधक है। फिर भी उस पर ऋण दिखा दिया। हस्ताक्षर भी फर्जी थे।
कर्ज तो चुकाना होगा:
मध्यप्रदेश में किसानों को खरीफ और रबी फसलों के लिए मात्र एक फीसदी ब्याज दर पर राज्य सरकार कर्ज उपलब्ध करा रही है। दोनों फसलों के लिए लिया गया कर्ज चुकाने के लिए वर्तमान में दो तारीखें निर्धारित हैं एक मार्च में और दूसरी जून में। अब एक ही बार एक ही तारीख को दोनों कर्ज की राशि चुकाने का प्रावधान हो सकता है। इस प्रस्ताव पर नाबार्ड और रिजर्व बैंक तो सहमत हैं, परंतु अभी राज्य सरकार सहमत नहीं हो पाई है।
फिर विचार-विमर्श हुआ:
खरीफ के कर्ज को चुकाने का प्रावधान 15 मार्च तक किया गया था, जो अब 31 मार्च तक बढ़ा दिया गया है। इसी प्रकार रबी की फसल का कर्ज चुकाने 15 जून अंतिम तारीख तय है। इसमें किसानों की दिक्कतों को देखते हुए अपेक्स बैंक ने इन दोनों अंतिम तारीखों के प्रावधान का युक्तियुक्तकरण किए जाने का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव से नाबार्ड और रिजर्व बैंक सैद्वांतिक रूप से सहमत है। राज्य सरकार भी इस पर विचार कर रही है और जल्द ही सहमति दे सकती है। प्रस्ताव के मुताबिक 30 अप्रैल की तारीख निर्धारित की जा सकती है। इस तारीख को खरीफ और रबी दोनों के लिए लिया गया कर्ज एक साथ चुकाया जा सकता है।
लिंकिंग से हो सकती मेजर रिकवरी:
प्रस्ताव के तहत लिंकिंग से कर्ज की रिकवरी हो सकती है। समर्थन मूल्य पर गेहूं की बिक्री के साथ ही कर्ज की वसूली की जा सकती है। अनाज के बदले किए जाने वाले भुगतान से ही कर्ज की रकम की रिकवरी कर ली जाएगी।
बैंक का पक्ष:
युक्तियुक्तकरण का प्रस्ताव दिया है। इससे रिजर्व बैंक और नाबार्ड तो सैद्धांतिक रूप से सहमत हैं, परंतु अभी इस पर राज्य सरकार को विचार करना है। इस पर भी जल्द निर्णय हो सकता है। - कैलाश सोनी, उपाध्यक्ष अपेक्स बैंक।
कर्ज की स्थिति 2010-11
38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंक (25 नवंबर, 2011 की स्थिति):
कुल ऋण - 8507.44 करोड़
वसूली - 6018.30 करोड़
बकाया - 2489.14 करोड़
38 जिला सहकारी कृषि व ग्रामीण विकास बैंक:
कुल ऋण - 766.91 करोड़
वसूली - 215.81 करोड़
बकाया - 551.01 करोड़
सिंचाई विभाग का बकाया:
01 अप्रैल, 2009 तक - 187.83 करोड़
कुल बकाया - 231.65 करोड़
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