Feb 25, 2012

सरकार अब खुद बन बैठी साहूकार



 भले ही मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने साहूकारों पर लगाम कसने के लिए साहूकारी अधिनियम कानून को कडक़ बना दिया है, लेकिन तब भी प्रदेश की गली-गली में फैले साहूकारों की दादागिरी न सिर्फ फल-फूल रही है, बल्कि उनका कारोबार दिन-दूना रात चौगुना बढ़ता ही जा रहा है। प्रदेश के गरीब किसान और मजदूरों की जिंदगी साहूकारों के घरों पर गिरवी रखी हुई है। यहां तक कि कर्ज में डूबे किसानों ने तो अपने खेत तो गिरबी रखे ही हुए हैं, बल्कि अन्य सम्पत्ति भी गिरवी रखने में पीछे नहीं रहे हैं।
भोपाल। मप्र सरकार ने एक साल पहले 15 जनवरी 2011 को साहूकारों पर नकेल कसने के लिए सख्त कानून बनाया था, लेकिन उसका असर राज्य में कहीं भी देखने को नहीं मिल रहा है, बल्कि साहूकारों के शिकंजे में फंसकर आम आदमी मौत को जरूर गले लगा रहा है। प्रदेश में साहूकारों के चंगुल में फंसे करीब एक दर्जन लोगों ने अब तक आत्महत्या कर ली है। साहूकारों का कारोबार सबसे अधिक महाकौशल और मालवा में फल-फूल रहा है। बुंदेलखंड में भी इसकी धमक यथावत् कायम है।
    गेहूं खरीदी के दौरान किसानों से कर्ज वसूली की तैयारी कर रही राज्य सरकार खुद साहूकार बन बैठी है। यही वजह है कि किसानों को गले-गले तक कर्ज के जाल में फंसाने वाले साहूकारों पर कार्यवाही के लिए खुद के बनाए कानून पर भी सरकार ने अमल नहीं किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में 21 जून 2011 को हुई कैबिनेट की बैठक में मप्र साहूकारी अधिनियम 1938 में संशोधन करते हुए गैर लायसेंसी साहूकारों द्वारा दिए गए कर्ज को शून्य घोषित करने का निर्णय लिया गया था। इसी संशोधन में यह भी जोड़ा गया था कि अब साहूकारी के लिए लायसेंस लेना जरूरी होगा और कृषि ऋण पर ब्याज दर का निर्धारण भी सरकार करेगी। कहा यह भी गया था कि यदि कोई गैर लायसेंसी साहूकार कर्ज देता है, तो वह शून्य समझे जाएंगे और ऐसे ऋणों की वसूली किसी भी अदालत के माध्यम से नहीं की जा सकेगी, लेकिन इन नौ महीने में एक भी किसान को इसका लाभ नहीं मिला। श्री चौहान ने 15 जनवरी 2011 को घोषणा की थी कि सरकार किसानों को साहूकारों के चंगुल से मुक्त करवाएगी। फिर अधिनियम में संशोधन किया गया। घोषणा पूरी करने के लिए कागजों में तो संशोधन हो गया पर इसका कोई लाभ किसानों को अब तक नहीं मिला।
ऋण में डूबे किसान हुए दरकिनार:
    खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए अलग से कृषि कैबिनेट और विधानसभा के बजट सत्र में कृषि बजट लाने की तैयारी कर रही, सरकार के ये सभी प्रयास सिर्फ दिखावा साबित हो रहे हैं। कर्ज के बोझ से दबे किसान सरकार के एजेंडे में नहीं हैं। स्वर्णिम मप्र के लिए तय किए गए 70 संकल्पों से लेकर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर हुए मुख्यमंत्री के भाषणों में कर्ज से दबे किसानों का कहीं कोई जिक्र नहीं है। विभागों की समीक्षा बैठकों में भी कभी इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई। साहूकारी अधिनियम में संशोधन करने के बाद सरकार ने जिलों को नए कानून के मुताबिक कार्यवाही शुरू करने के लिए भी अब तक कोई दिशा-निर्देश तक जारी नहीं किए। नया कानून आने के बाद प्रदेश के किसी भी जिले में यह जानने की कोशिश स्थानीय प्रशासन ने नहीं की, कि किसानों को मोटे ब्याज पर ऋण बांटने वाले साहूकारों के पास लायसेंस हैं या नहीं। न ही गैर लायसेंसी साहूकारों द्वारा दिए गए कर्ज को शून्य घोषित करने के संबंध में कोई कार्यवाही हुई।
आयोग का नजरिया साहूकार चारो तरफ:
    मानव अधिकार आयोग की सरकार को भेजी गई इस रिपोर्ट में भी कहा गया है कि मप्र में ऐसे साहूकार चारों तरफ फैले हुए हैं, जो किसानों की मजबूरी का फायदा उठाने के लिए महेशा तैयार रहते हैं। ऐसे साहूकारों के कारण किसान आत्महत्या भी कर लेता है। रिपोर्ट के अनुसार आयोग को जिलों से मिली जानकारी के अनुसार ऐसे किसी भी मामले में किसी भी साहूकार के खिलाफ न तो आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया और न ही उसके खिलाफ आपराधिक प्रकरण चलाया गया।
साहूकारी अधिनियम और मप्र:
    15 जनवरी 2011 को मुख्यमंत्री की घोषणा
    21 जून 2011 को कैबिनेट सेे पारित
क्या-क्या बदलाव:
    साहूकारी के लिए लायसेंसी जरूरी
    गैर लायसेंसी साहूकारों के ऋण शून्य
    लायसेंसी साहूकारों की संख्या भी नहीं
    कागजों में बदला कानून, हकीकत जस की तस
    साहूकारों के कारण भी आत्महत्या कर रहे किसान
    ऋण वसूली के लिए किसानों पर दवाब डालते
    साहूकारी कानून लागू नहीं कर पाई सरकार
    नौ महीने बीत एक भी किसान को नहीं फायदा
    मानव अधिकार आयोग की रिपोर्ट हवा में उड़ी
    सरकार-साहूकार साथ-साथ कर रहे वसूली।

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