Dec 14, 2011

प्रदेश की डूबी आर्थिक नैया आमदनी अठन्नी खर्चा रूपैया




 भाजपा सरकार भले ही कितने ही दावे करें कि उनका खजाना लबालब भरा हुआ है, लेकिन असलियत यह है कि आमदनी तो कम हो रही है और खर्च ज्यादा हो रहा है। वित्त मंत्री राघवजी ने वित्त विभाग पर अनुशासन की नकेल तो डाल रखी है, लेकिन उस दिशा में अभी तक सार्थक परिणाम नहीं मिल रहे हैं। टैक्स भी लगातार घट रहे हैं जो कि सरकार और प्रदेश के लिए खतरे की घण्टी है।

 मध्यप्रदेश के सरकारी खजाने की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। केंद्रीय करों सहित स्वयं के टैक्स से उसे छह माह के भीतर जहां 30 हजार 148 करोड़ की आय हुई, वहीं आयोजना सहित अन्य खर्चों पर 33 हजार 985 करोड़ रूपए व्यय हो गया है। यदि केंद्रीय करों से एमपी को पैसा नहीं मिलता तो क्या दशा होती, यह सोचनीय पहलू है, जबकि राज्य को स्वयं के करों से मात्र 12 हजार 568 करोड़ से ही संतोष करना पड़ा है।
    प्रदेश की भाजपा सरकार पिछले सात साल से ओवर ड्रा की स्थिति में तो नहीं रही, इसके बावजूद सरकारी खजाने की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। मध्यप्रदेश को पिछले छह माह के दौरान कुल 30 हजार 148 करोड़ का राजस्व आय प्राप्त हुआ, इसमें टैक्स के रूप में मिली 21 हजार 819 करोड़ की राशि भी शामिल है, जबकि राज्य को स्वयं के करों से बहुत कम यानि 12 हजार 568 करोड़ रूपए से ही संतोष करना पड़ा। वैसे यह राशि भी वर्ष 2009-10 की तुलना में 17.81 प्रतिशत अधिक रही है, फिर भी आयोजना तथा आयोजनेत्तर खर्चों पर व्यय हुई राशि पर नजर डाली जाए तो प्रदेश की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। पिछले छह माह के दौरान 33 हजार 985 करोड़ राशि खर्च हो चुकी है।
केंद्रीय करों में हुई कमी:
    प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले छह माह के दौरान राजस्व व्यय 25 हजार 391 करोड़ का हुआ है, जबकि पूंजीगत व्यय पर 5 हजार 616 करोड़ की राशि खर्च हुई है। उधार और अग्रिम पर जहां 2 हजार 976 करोड़ का व्यय हुआ है, वहीं राजकोषीय घाटा 3 हजार 463 करोड़ हो गया है। केंद्रीय करों से एमपी को हिस्से के रूप में जहां 9 हजार 250 करोड़ की राशि मिली, वहीं केंद्र से सहायक अनुदान के रूप में 4 हजार 831 करोड़ तथा पूंजीगत राजस्व प्राप्तियों से मात्र 1631 करोड़ की राशि मिल सकी है।
डांवाडोल हो रहा सरकारी खजाना:
    राज्य सरकार को स्वयं के अलावा केंद्रीय करों से जहां 21 हजार 819 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ, वहीं खर्चें की स्थिति पर नजर डाली जाए तो यह 33 हजार 985 करोड़ हो गया है। यानि आय से कहीं अधिक 3 हजार 837 करोड़ का व्यय हुआ है। इससे प्रदेश के सरकारी खजाने की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
बढ़ता जा रहा है कर्ज:
    मध्यप्रदेश सरकार पर हर वर्ष 5 से 7 हजार करोड़ का कर्ज चढ़ता जा रहा है और इस पर कमी लाने की राज्य सरकार की कतई चिंता नहीं है। यही कारण है कि वर्ष 2010 को 31 मार्च की स्थिति 57 हजार करोड़ से कही अधिक बढक़र 73 हजार करोड़ तक पहुंच गया है।

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