Dec 21, 2011

प्रदेश कांग्रेस को फिर लगा गुटबाजी का रोग


वर्षों के इंतजार के बाद प्रदेश कांग्रेस मे एकता की संभावना दिखी थी,लेकिन अघोषित रूप से शापित प्रदेश कार्यालय में मौजूद रहने वाले नेताओं के बीच गुटबाजी बढ़ती ही जा रही है। अब इस बात के भी प्रयास हो रहे हैं कि पार्टी कार्यालय पर किसका कब्जा रहे और भूरिया किनके वश में रहे? इसके चलते नेताओं में जबर्दस्त रस्सा-कस्सी शुरू हो गई है। वैसे भी यहां पर धीरे-धीरे दिग्विजय और कांतिलाल भूरिया गुटों में मुठभेड़ होने लगी है।
भोपाल। प्रदेश कांग्रेस कमेटी की आठ महीने से कमान संभाले हुए कांतिलाल भूरिया की कार्यशैली पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। भूरिया ने बमुश्किल तो कार्यकारिणी बनाई और अब जब कार्यकारिणी बन गई तो पदाधिकारियों के कार्य विभाजन में काफी देर लगा दी। इसके चलते संगठन का काम लगातार पिछड़ता ही जा रहा है। अब जबकि पदाधिकारियों का कार्य विभाजन हो गया, चैम्बर मिल गया, तब वे यह पूछ रहे हैं कि उन्हें काम क्या करना है, इसका अभी तक खुलासा नहीं हुआ है। जिसे लेकर नेताओं में विवाद भी होने लगे हैं।
    प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में पिछले 6 सालों से यह स्थिति बन गई है कि जो अध्यक्ष बनता है उनके समर्थक ही कार्यालय में कदम-ताल करते हैं बाकी लोग कार्यालय से कन्नी काट लेते हैं, पर भूरिया ने इस बार प्रयास किया है कि अलग-अलग गुट के नेताओं को महत्व दिया ताकि वे सभी वर्ग को लेकर पार्टी को सक्रिय कर सके। प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में प्रतिदिन पहुंचने वाले नेताओं में मानक अग्रवाल, शांतिलाल पडय़ार, जेपी धनौपिया, सत्यदेव कटारे, कैप्टन जयपाल सिंह, संजय दुबे, केके मिश्रा, रवि जोशी, रवि सक्सेना आदि शामिल हैं। पर इनके बीच भी समन्वय का अभाव है, अब तो यह होने लगा है कि प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में मौजूद रहने वाले नेता राज बबन और केंद्रीय नेताओं से अलग-अलग गुट में पहुंच रहे है। राजभवन में तो पिछले दिनों कांग्रेस नेताओं से पूछ ही लिया कि आखिरकार वे बताये कि कांग्रेस के किस गुट के नेता महामहिम से मिलना चाह रहे हंै। इसके साथ ही हाल ही में केंद्रीय मंत्री प्रणव मुखर्जी और सुबोधकांत सहाय के भोपाल आगमन पर राजनीति साफतौर पर नजर आई है। बताया जाता है कि नेताओं ने अलग-अलग जाकर केंद्रीय नेताओं से मुलाकात की है और अपनी बात रखी है।
क्या कर रहा है संगठन:
    अभी तक जिलों में हो रही है कांग्रेस की रैलियां
    भूरिया और अजय ने 29 जिलों का दौरा पूरा किया
    सारे प्रकोष्ठ कर दिये गये हंै भंग
    पार्टी में धीरे-धीरे सक्रिय होने लगे प्रवक्ता
    पदाधिकारियों को जिन जिलों की जिम्मेदारी सौंपी है वे भी निकले
    संगठन की ओर से होते हैं समय-समय पर श्रृंद्वाजलि कार्यक्रम
    गुटबाजी का ग्राफ भी लगातार फैल रहा है पार्टी कार्यालयों में
कहां कहां गुटबाजी:
    भूरिया कैम्प - प्रमोद गुगालिया, शांतिलाल पडिय़ार, संजय दुबे, रवि जोशी, रवि सक्सेना,कैप्टन जयपाल सिंह, राजेंद्र गहलोत, अकबर वेग
    दिग्विजय कैम्प - मानक अग्रवाल, गोविंद गोयल, पीसी शर्मा, अभय दुबे
    पचौरी कैम्प - राजीव सिंह, सुनील सूद, अतुल शर्मा, अरविंद मालवीय।


मप्र परिवहन नीति के चलते शासन को लग रहा करोड़ों का चूना


मध्यप्रदेश इकलौता ऐसा राज्य है जहां पर सरकार की परिवहन नीति के चलते करोड़ों की चपत हर साल लग रही है और सरकार की नींद तक नहीं खुल रही है, न तो परिवहन मंत्री को इसकी चिंता है और न ही अफसरों को। वे सब अपने-अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं इसके चलते वाहन माफिया अपना लाभ उठा रहा है और नुकसान सरकार के खजाने को हो रहा है।

भोपाल। मध्यप्रदेश राज्य परिवहन नीति के चलते शासन को करोड़ों रूपये के राजस्व की चपत लग रही है। दरअसल तत्कालीन परिवहन मंत्री उमाशंकर गुप्ता के कार्यकाल मेें केंद्रीय मोटरयान अधिनियम 1988 के नियमों के तहत पड़ोसी राज्यों के वाहनों के साथ पारस्परिक परिवहन करार किया गया था, जिसमें मध्यप्रदेश आने वाले पर्यटक वाहनों, जिसमें वोल्वो बसें, मिनी बस, जीप, टैक्सी और केरवान आदि के प्रदेश में घुसने पर एक निश्चित राशि देय करनी होगी। यह करार राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ राज्यों के साथ संयुक्त रूप से किया गया था। राज्य शासन ने इस संयुक्त प्रस्ताव को प्रदेश की परिवहन नीति में भी शामिल किया। समस्या तब शुरू हुई जब इस नीति का पालन मध्यप्रदेश में तो बदस्तूर जारी रहा, लेकिन अन्य प्रदेशों ने उनके राज्यों में घुसने वाले वाहनों से अपनी इच्छा के अनुरूप मनमानी राशि वसूलनी प्रारंभ कर दी। प्रदेश में एंट्री करने वाले वाहनों से परिवहन और नगरीय प्रशासन विभाग मिलकर शुल्क लेते हैं।
पिछड़ गया मध्यप्रदेश एंट्री फीस लेने में:
     एंट्री फीस लेने के मामले में प्रदेश पिछड़ गया है। आलम यह है कि अब प्रदेश के पर्यटक वाहन यदि अन्य राज्यों में जाते हैं तो उन्हें उन राज्यों के अनुसार शुल्क देना पड़ता है, जो लाखों में हो जाता है, जबकि राज्य में आने वाले वाहनों को अभी भी 2000 रूपए मात्र में घुसने दिया जा रहा है। एक बार एंट्री हो जाने के बाद इन वाहनों पर किसी की निगरानी नहीं होती, जिसके चलते ये कई-कई दिन यहां रूक जाते हैं, जिससे शासन को रोजाना लाखों रूपये का नुकसान हो रहा है। इसके उलट हमारे प्रदेश के वाहनों को दूसरे राज्यों की सीमा से लगकर गुजरने में भी पूरी राशि परिवहन विभाग को चुकानी पड़ रही है। इससे यहां के वाहन चालक परेशान हैं। वाहन चालकों का कहना है कि वे एक बार किसी राज्य की सीमा में घुस जाएं तो भी उन्हें वह राशि चुकानी ही पड़ती है। अलग-अलग राज्य की अलग-अलग एंट्री फीस निर्धारित है। इनमें हरियाणा में 7500 रूपये प्रति वाहन, महाराष्ट्र में 10 से 15 हजार प्रति वाहन, आंध्रप्रदेश में 35 हजार है। इन सबके बावजूद मध्यप्रदेश में आज भी 2000 रूपये एंट्री शुल्क लिया जा रहा है, जिससे परिवहन विभाग का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है।


Dec 19, 2011

अटल जी को तोहफा देने मे आई अड़चन




मध्यप्रदेश को कर्म भूमि मानकर वर्षों तक राजनीति करते रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पिछले तीन-चार सालों से राजनीतिक गतिविधियों से दूर अपने बंगले तक दिल्ली में सिमट कर रह गये हैं, न तो उनके बारे में कोई जानकारी सार्वजनिक हो रही है और न ही वे जनता के बीच आ रहे हैं। इस बीच अचानक भाजपा सरकार को अटल जी की याद सताने लगी है।

भोपाल। पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेई जी का जन्म दिन 25 दिसंबर को मनाया जाता है, इस दिन प्रदेश सरकार ने अटल जी के नाम पर विश्वविद्यालय खोलने का ऐलान किया था, लेकिन ऐसा लग रहा है कि विश्वविद्यालय का तोहफा फिलहाल अटल जी को अभी नहीं मिल पायेगा। अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद राज्य सरकार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके जन्मदिन 25 दिसंबर को हिन्दी विश्वविद्यालय का तोहफा नहीं दे पाएगी। विवि की स्थापना को राज्यपाल रामनरेश यादव की मंजूरी शुक्रवार को मिल गई है, लेकिन इतने कम समय में गरिमापूर्ण ढंग से इसके शुभारंभ का बड़ा आयोजन करना संभव नहीं हो पा रहा है।
    अटलजी के जन्मदिन पर उनके नाम से कोई न कोई नया काम करने की शुरूआत शिवराज सिंह चौहान ने तीन साल पहले शुरू की थी। उनकी मंशा थी कि इस बार भी उनके जन्मदिन पर आरएसएस की इच्छा के अनुरूप हिंदी विवि शुरू किया जाए। इसके लिए सरकार ने विधानसभा के पिछले सत्र में विवि की स्थापना संबंधी विधेयक पारित कराया। सरकार चाहती थी कि इसका उद्घाटन एक भव्य कार्यक्रम में राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल के हाथों से कराया जाए। इसके लिए मुख्यमंत्री भी उनसे समय मांग रहे हैं। उच्च शिक्षा मंत्री के स्तर पर भी आयोजन को व्यापक बनाने के प्रयास चल रहे हैं, लेकिन विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी मिलने में हुई देरी के चलते 25 दिसंबर को यह कार्यक्रम होने की गुंजाइश नहीं दिख रही। इसलिए अब राष्ट्रपति से 25 दिसंबर से 15 जनवरी के बीच का समय मांगा जा रहा है।
सम्मानित होंगे लेखक:
    अपनी लेखनी के जरिए हिन्दी की सेवा करने वाले देशभर के ख्यातिनाम लेखक कवि और साहित्यकारों के वंशजों का इस मौके पर सम्मान करने की उच्च शिक्षा विभाग की योजना है। इस सूची में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, माखनलाल चतुर्वेदी जैसे तीन दर्जन से ज्यादा नाम शामिल हैं।
संघ चाहता था विवि बने:
    आरएसएस चाहता है कि इंजीनियरिंग और मेडिकल सहित सभी विषयों में हिन्दी माध्यम से शिक्षा की शुरूआत मध्यप्रदेश से हो। पूर्व सरसंघचालक केएस सुदर्शन ने राजधानी में एक कार्यक्रम में यह इच्छा जताई थी। उसके बाद ही प्रदेश सरकार ने इस दिशा में काम शुरू किया। विवि के लिए नया भवन बनने तक यह भोज विवि के लिए नया भवन बनने तक यह भोज विवि परिसर से संचालित होगा।
मंत्री का कहना है:
    हिन्दी विश्वविद्यालय विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी मिल गई है। विवि की स्थापना के कार्यक्रम की तैयारियां शुरू की जा रही है। विवि की स्थापना राष्ट्रपति के कर कमलों से कराने के प्रयास चल रहे हैं। - लक्ष्मीकांत शर्मा, उच्च शिक्षा मंत्री।

Dec 17, 2011

मायावी सपना बन गया मायानगरी का ऐलान



मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार सपनों की कलाबाजियों मे माहिर है। सरकार कोई न कोई ऐसा सपना हर एक साल में दिखा रही है, लेकिन उसे पूरा नहीं किया जा रहा है। इसी सपनों की कड़ी में सरकार ने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में फिल्म सिटी बनाने का ऐलान किया था। राजधानी के आसपास जमीन भी चिन्हित कर ली गई थी, लेकिन अभी तक इस दिशा में भाजपा सरकार एक कदम आगे नहीं बढ़ी है। अब पूरा प्रोजेक्ट संस्कृति विभाग को नये सिरे से मिला है।
भोपाल। दक्षिण भारत में अधिकांश राज्य फिल्मों के जरिए जमकर पैसा कमा रहे हैं, लेकिन मध्यप्रदेश इस दिशा में गहरी नींद में है, जबकि राज्य में फिल्मों की शूटिंग के लिए प्राकृतिक सौंदर्यता की भरमार है पर राजनेताओं को अपनी राजनीति करने से फुरसत ही नही मिल रही है,यही वजह है कि पिछले आठ सालों से फिल्म सिटी का मामला फाइलों से बाहर नहीं निकल पा रहा है।
    लिहाजा राजधानी में फिल्म सिटी का निर्माण अब संस्कृति विभाग करेगा। इस प्रोजेक्ट के लिए राज्य सरकार ने संस्कृति विभाग को अधिकृत कर दिया है। विभाग फिल्म सिटी बनाने के साथ ही उसके संचालन, फिल्म निर्माण संबंधी विषय भी देखेगा।
उद्योग विभाग ने कोई पहल नहीं की:
    भोपाल के पास फिल्म सिटी बनाने का जिम्मा पहले उद्योग विभाग के पास था। विभाग ने बगरौदा के पास इसके लिए 471.82 एकड़ जमीन भी आरक्षित करा रखी थी, लेकिन कला और संस्कृति से जुड़े इस मामले में संस्कृति विभाग उद्योग विभाग की योजना से सहमत नहीं था। फिल्म सिटी के लिए पसंद की गई जमीन को भी अपर्याप्त और अनुपयोगी बताते हुए संस्कृति विभाग द्वारा इस पर ऐतराज जताया गया था। इन कारणों से फिल्म सिटी के लिए आरक्षित जमीन को गैर प्रदूषणकारी उद्योग लगाने के प्रयोजन के लिए देने का कैबिनेट को निर्णय लेना पड़ा। मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में लिए गए निर्णय के आधार पर सरकार ने अब संस्कृति विभाग के कार्य आवंटन नियमों में संशोधन करते हुए फिल्म सिटी की स्थापना, संचालन तथा समन्वय, फिल्म निर्माण, प्रशिक्षण प्रोत्साहन, विकास तथा इस विषय से संबंधित समस्त कार्य संस्कृति विभाग को सौंपे हैं। इस बारे में अधिसूचना जारी होने के साथ संस्कृति विभाग द्वारा फिल्म सिटी निर्माण की दिशा में तेजी से काम शुरू होने की संभावना है। 
                                देवेन्द्र मिश्रा,भोपाल

Dec 16, 2011

चेन्नई मे रणनीति बना रहे भाजपा के अमर अकबर एंथोनी





अविश्वास प्रस्ताव की धमक से परेशान मध्यप्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने अब नये सिरे से रणनीति बनानी शुरू कर दी है। इसी चरण में मुख्यमंत्री तमिलनाडु में तीन दिनों से भविष्य की रणनीति बना रहे हैं उनके साथ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा और महामंत्री अरविंद मेनन भी हैं। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि आगामी कार्ययोजना और भविष्य की राजनीतिक पृष्ठ भूमि तैयार हो रही है।

भोपाल। कहा तो यह जा रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान अपनी पत्नी साधना सिंह का इलाज कराने चेन्नई गये हैं और साथ ही भाजपा अध्यक्ष झा भी अपने पैरों का परीक्षण कराने चैन्नई गये हैं, लेकिन फिर संगठन महामंत्री अरविंद मेनन को क्यों चेन्नई बुलाया गया है ? इससे साफ जाहिर है कि सरकार और संगठन मिलकर भविष्य की नई रणनीति पर काम कर रहे हैं।
    कांग्रेस के हल्ला बोल और संघ के किसान आंदोलन जैसी चुनौतियों से ब्रेफिक्र भाजपा के नीति-निर्धारकों की पॉवरफुल तिकड़ी सत्ता की राह में किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए तमिलनाडु में रणनीति बना रहे हैं। मंत्रिमंडल विस्तार की सुगबुगाहट भले ही ठंडी पड़ चुकी हो, लेकिन मंत्रियों के विभाग बदलने को लेकर चर्चा फिर जोर पकड़ सकती है। हाल में कुछ मंत्रियों के प्रभार बदले जा चुके हैं। व्यक्तिगत स्तर पर स्वास्थ्य परीक्षण के साथ इन नेताओं का लक्ष्य सरकार को आम मतदाताओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरकर दिखाना है। धार्मिक और निजी यात्रा में मुख्यमंत्री के साथ प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा पहले से ही चेन्नई में डेरा डाले हैं और अब संगठन महामंत्री अरविंद मेनन भी इसमें शामिल हो गये हैं। तिरूपति बालाजी की धार्मिक यात्रा से पहले भाजपा के इन तीन शीर्ष नेताओं के हैल्थ चेकअप की खबरें चर्चा का विषय बन चुकी हैं।
मंत्रियों के भ्रष्टाचार और विपक्ष:
    सत्ता और संगठन के अहम निर्णय लेकर भाजपा को दिशा देने वाले ये नेता उस वक्त प्रदेश से बाहर हैं, जब कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और उनकी टीम मंत्रियों पर भ्रष्टाचार में लिप्तता और संरक्षण देने के आरोप को जनता के बीच हवा देने में जुट गए हैं। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार के नुमाइंदों द्वारा कोई जवाब और कार्यवाही का भरोसा नहीं मिलने के बाद विपक्षी दल से जुड़े नेता मतदाताओं के बीच जाने लगे हैं, तो उधर भाजपा में जिस संघ के बिना पत्ता भी नहीं हिलता उसके अनुषांगिक संगठन भी विरोध की राजनीति में सक्रिय हो गए हैं। खासतौर से किसान संघ नए सिरे से आंदोलन की रणनीति बना रहा है। भाजपा के अमर अकबर एंथोनी की इस तिकड़ी के बीच स्थापित समन्वय और सामंजस्य को पार्टी में चुनौती देने का माद्दा किसी में नहीं है। संभावित चुनौतियों से निपटने का माद्दा रखने का दावा करने वाले इन नेताओं को अपने समर्थकों पर पूरा भरोसा है तो वे विकास यात्रा, बलराम यात्रा पर निकलने के पहले नए जोश के साथ विरोधियों को करारा जवाब देंगे।
चैन्नई टू ग्वालियर:
    निजी विमान सेवाओं के जरिए दक्षिण भारत की यात्रा पर पहुंचे इन नेताओं ने राजधानी छोडऩे से कुछ दिन पहले ही कोर कमेटी की बैठक बुलाकर प्रदेश के अन्य वरिष्ठ नेताओं से कई मुद्दों पर चर्चा कर उनकी थाह भी ली थी। भाजपा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन जोर शोर से मनाने के बाद संगठन के बैनर तले ग्वालियर में दो दिन की कार्यसमिति में कांग्रेस से मिलने वाली चुनौती को लेकर चिंतन और मंथन करेगी। सूत्र बताते हैं कि भोपाल लौटने के बाद संघ के शीर्ष नेताओं के साथ इनकी महत्वपूर्ण बैठकें होगी।
                        देवेन्द्र मिश्रा,भोपाल

Dec 15, 2011

शिव सरकार की भाषा मे अब कांग्रेस की ललकार


प्रदेश में सरकार बनाने का ख्वाब देख रही कांग्रेस अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरने के लिए उनकी ही उस स्कीम का सहारा ले रही है, जिसके जरिए चौहान अभी तक अपनी सरकार की मार्केटिंग करते रहे। शिव-राज पर हमले के लिए कांग्रेस ने एक बुकलेट निकाली है, जिसमें मध्यप्रदेश में चल रही केंद्र की प्रमुख योजनाओं और उनमें मिलने वाली राशि के साथ योजना की ताजा स्थिति दर्ज है।
भोपाल। प्रदेश में लगातार दूसरी बार सत्ता में आ चुकी भाजपा पर अभी तक कांग्रेस आरोप लगाती रही है कि वह केंद्र की योजनाओं का खुद श्रेय लेती है। सरकार और भाजपा द्वारा अपने प्रचार के लिए गांव-गांव तक बंटवाई जाने वाली बुकलेट और हैंडबिल में केंद्रीय योजनाओं तक को प्रदेश सरकार की उपलब्धि में गिनाया जाता है। लंबी खामोशी के बाद हाल ही में अविश्वास के जरिए सरकार को घेरने के सफल प्रयास से उत्साहित कांग्रेस अब सरकार की कमजोरियों और गड़बडिय़ों को जनता के बीच ले जाने के साथ ही भाजपा की तर्ज पर ही केंद्र सरकार द्वारा प्रदेश को दी गई सौगातों का प्रचार करेगी। इसके लिए मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी ने एक बुकलेट ‘‘कांग्रेसनीत केंद्र सरकार द्वारा मध्यप्रदेश में संचालित ध्वजवाहिनी योजनाएं‘‘ शीर्षक से निकाली हैं। इसमें मनरेगा, मध्यान्ह् भोजन योजना, राजीव गांधी आवास योजना सहित केंद्र की वे प्रमुख 16 योजनाएं शामिल की गई हैं, जिनमें केंद्र से हर साल प्रदेश को भारी भरकम धनराशि मिलती है।
फोटो के साथ संदेश:
    शिवराज सिंह द्वारा छपवाई जाने वाली बुकलेट की तर्ज पर कांग्रेस की इस बुकलेट में भी राहुल और सोनिया गांधी के चित्र के साथ प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के आदमकद चित्र हैं।
फिर आएगा आरोप पत्र:
    विधानसभा में अविश्वास के साथ लाए गए आरोप पत्र के बाद अब कांग्रेस घपले-घोटालों को लेकर जाएगी। इसकी तैयारी हो रही है। इसमें सरकार की असफलताएं बताने के साथ मंत्रियों के परिजनों से जुड़े मामले भी होंगे।
इनका कहना:
    केंद्रीय योजनाओं के बारे में जनता को बताना और प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार की जानकारी आमजन तक पहुंचाने की जवाबदेही कांग्रेस के प्रत्येक कार्यकर्ता की है। इस जवाबी हमले के बाद अब हम सरकार के खिलाफ आरोप पत्र भी तैयार कर रहे हैं, जो जल्द ही जनता के बीच होगा। - मानक अग्रवाल, मुख्य प्रवक्ता कांग्रेस।

नौकरशाही पर भ्रष्टाचार की चपेट,सरकार अपने प्रचार मे अचेत


 राज्य सरकार पर नौकरशाही के जाल का ताना-बाना अब और भी मजबूत हो गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं पूरी सरकार नौकरशाही पर निर्भर हो गई है। अधिकांश निर्णय नौकरशाही की सहमति से हो रहे हैं। यहां तक कि पार्टी के बड़े नेता भी कहने लगे हैं कि नौकरशाही उनकी बात नहीं सुनते हैं और सरकार के मुखिया जो कहते हैं वहीं हो रहा है।

भोपाल। नौकर शाही के सरकार पर हावी होने की शिकायतें जनता के साथ-साथ विधायक और मंत्री भी करते रहते हैं। जबकि अधिकारी मुख्यमंत्री के अतिरिक्त अधिकांश जनप्रतिनिधियों को नजरअंदाज करते रहते हैं। वहीं जनप्रतिनिधियों का आारोप है कि सूबे में अफसरशाही की करतूतें सरकार पर भी हावी हैं। प्रदेश में ऊंचे ओहदों पर बैठे अधिकांश अफसर दागी हैं। लोकायुक्त और आर्थिक अपराध ब्यूरो ने इनकी जांच भी पूरी कर ली है, लेकिन विधि विभाग ने इनके अभियोजन की अनुमति नहीं दी है। जिसके चलते इन भ्रष्ट अफसरों के मामले न्यायालय की दहलीज तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। व्यवस्था संभालने के लिए जो अधिकारी हैं वे खुद व्यवस्था को डस रहे हैं
    इन अफसरों पर सिर्फ भ्रष्टाचार ही नहीं ठगी, झूठे मामले में फंसाने, जमीनें हड़पने और जान से मारने की धमकी देने जैसे संगीन मामले हैं। इसके बावजूद शासन दागी अफसरों की फाइलों पर कुंडली मार कर बैठा है। कई मामलों में जांच पूरी हुए तीन से चार साल हो चुके हैं, लेकिन अफसरों की सांठगांठ के चलते मामलों में अभियोजन की अनुमति नहीं मिल रही है। इनमें वरिष्ठ आईएएस अफसर शामिल हैं। कई अफसर तो ऐसे हैं जिनके विरूद्ध मामले अदालत तक पहुंचे ही नहीं और वे सेवानिवृत्त हो गए।
कलेक्टरों की कारगुजारियां:
    अधिकांश आईएएस अफसरों के दामन कलेक्टरी के दौरान ही दागदार हो गए। सरकार ने भी भ्रष्टाचार से घिरे इन अफसरों पर नकेल कसने के बजाय इन्हें प्रमोशन देकर प्रोत्साहित किया। इनमें से ज्यादातर अफसर अब सचिव स्तर के पदों पर विराजित हैं और कई महत्वपूर्ण विभागों की बागडोर इनके हाथों में हैं। इन्होंने सरकारी खरीदी,  जमीन आवंटन और नियुक्तियों में अनियमितताएं की हैं।
निगमायुक्त भी कटघरे में:
    पूर्व आईएएस और भोपाल नगर निगम में आयुक्त रहे एमए खान पर आर्थिक अनियमितताओं के करीब आधा दर्जन मामले दर्ज  हैं। जब तक वे नौकरी में रहे तब तक कोई भी जांच एजेंसी उन पर हाथ डालने से कांपती रही। लेकिन जिस दिन खान रिटायर हुए उसी दिन उन पर यह मामले दर्ज कर लिए गए। उनकी सेवानिवृत्ति और मामले दर्ज होने की तारीख 31 मार्च 2009 है। उन्होंने नादरा बस स्टैण्ड की छत पर दुकानों के आवंटन, लखेरापुरा में 2475 वर्गफीट भूमि नियम विरूद्ध आवंटन, हर्षवर्धन नगर में प्लॉट के आवंटन, न्यू मार्केट में दुकानों के आवंटन, होशंगाबाद रोड में 4000 वर्गफीट प्लॉट के आवंटन, 10 नंबर व हरिशंकर मार्केट,बिट्टन मार्केट में अवैध रूप से जगह का आवंटन, हलालपुरा में करीब 4 एकड़ जमीन का गलत तरीके से अधिग्रहण कर शासन को आर्थिक हानि पहुंचाने के आरोप हैं। इन मामलों में जांच एजेंसियों की तफ्तीश तीन साल बाद भी अधूरी है। इसी तरह पूर्व आईएएस महेंद्र सिंह भिलाला 2009 में सेवानिवृत्त हुए और इसी साल उन पर जिला पंचायत बैतूल और श्योपुर कलेक्टर रहते हुए पटवारी चयन परीक्षा व कृषि यंत्र खरीदने के मामले में भ्रष्टाचार करने का मामला कायम किया गया।
मनरेगा में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार:
    प्रदेश के सर्वाधिक अफसर मनरेगा में अनियमितताओं के मामले में फंसे हैं। जिनकी जांच चल रही है। कुछ के मामले में जांच पूरी हो गई हैं और अभियोजन की अनुमति मांगी गई है। मनरेगा में फंसे आईएएस अफसरों में भोपाल कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव, मनीष रस्तोगी, विवेक पोरवाल, संजय गोयल, केपी राही, सैयद सुहैल अली, बीएस शर्मा आदि प्रमुख नाम हैं। जिन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नाम पर करोड़ों रूपये की अनियमितता की है।
आईएएस अफसर और भ्रष्टाचार के दर्ज मामले:
आईएएस            -         आरोप
एमएस मूर्ति    -    ईओडब्ल्यू में चर्म विकास निगम में करोड़ों की राशि के गबन का मामला   दर्ज।
एसआर मोहंती    - एमपीएसआईडी का प्रबंध संचालक रहते हुए प्रतिबंध के बावजूद 33 कंपनियों   को 719 करोड़ रूपए का टर्म लोन बांटा।
संजय शुक्ला        - इंदौर नगर निगमायुक्त रहते हुए बख्तावर राम नगर में स्वीकृत मानचित्र के  वितरीत भूखण्ड काटकर विक्रय करने का आरोप।
मुक्तेश वाष्र्णेय    - बंदोबस्त आयुक्त और सक्षम अधिकारी रहते हुए शिवपुरी शहर से लगी 1500   बीघा जमीन के पंजीयन शुल्क में करोड़ों की हेराफेरी के आरोप में प्रकरण   दर्ज।
केके खरे        - अपर कलेक्टर रहते हुए सज्जन मिल्स रतलाम की लीज की जमीन के  विक्रय में अनियमितता।
एमएम उपाध्याय    - प्रमुख सचिव राजस्व विभाग रहते हुए ऋण पुस्तकों के वितरण में  अनियमितता।
योगेंद्र कुमार शर्मा     - विदिशा कलेक्टर रहते हुए शराब दुकान बंद कराने और लायसेंस रद्द करने के नाम पर अवैध वसूली का आरोप।
अरविंद जोशी    - प्रमुख सचिव, जल संसाधन रहते हुए आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित करना।
आशीष श्रीवास्तव    - प्रबंध संचालक औद्योगिक केंद्र विकास निगम रहते हुए विकास कार्यों के लिए मिली राशि से ऋण चुकता करने का आरोप।
संजय गोयल        - सीईओ जिला पंचायत खंडवा रहते हुए रोजगार गारंटी योजना के तहत ग्राम       पंचायत में 100 करोड़ की अनियमितता का आरोप।
शिवशेखर शुक्ला    - कलेक्टर व अध्यक्ष राष्ट्रीय बाल श्रम योजना उज्जैन रहते हुए अजा व जजा के छात्रों को प्रशिक्षण देने मिली 8 करोड़ रूपये की राशि के दुरूपयोग का   आरोप।
प्रमोद अग्रवाल    - एकेवीएन का प्रबंध संचालक रहते हुए अवैध तरीके से नियुक्तियां देने का आरोप।
निकुंज श्रीवास्तव    - कलेक्टर खण्डवा रहते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए शासन से आवंटित करोड़ों की राशि में घोटाले का  आरोप।
एसपी गुप्ता        - फर्जी ऋण प्रकरणों में लाखों रूपए के अनुदान स्वीकृत करना व आपराधिक   षडय़ंत्र रचने का आरोप।
पंकज अग्रवाल    - पूर्व क्षेत्र विद्युत कंपनी के सीएमडी के पद पर रहते हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार  का आरोप।
वीए कुरील        - कलेक्टर उमरिया रहते हुए आदिवासी विकास के लिए मिली राशि में अनियमितता का आरोप।
मनीष रस्तोगी    - कलेक्टर सतना रहते हुए रोजगार गारंटी योजना के तहत 10 करोड़ रूपए     का फर्जी भुगतान व बंदरबांट का आरोप।    
विवेक पोरवाल     - सीईओ जिला पंचायत सतना रहते हुए रोजगार गारंटी योजना के तहत 10   करोड़ रूपय का फर्जी भुगतान व बंदरबांट का आरोप।
एसके मिश्रा         - कलेक्टर रीवा रहते हुए मिट्टी तेल आवंटन एवं वितरण में अनियमितता।
योगेंद्र मिश्रा         - प्रबंध संचालक सहकारिता रहते हुए विवादित भूमियों का विक्रय।
केपी राही        - कलेक्टर टीकमगढ़ रहे हुए फोटोकापी मशीन व कम्प्यूटरों की खरीद में गड़बड़ी का आरोप प्रकरण दर्ज।
सै0सुहैल अली    - भिण्ड कलेक्टर रहते हुए खरीदी में आर्थिक अनियमितता के आरोप।
डॉ0 संजय गोयल    - अनुविभागीय अधिकारी नरसिंहगढ़ जिला राजगढ़ रहते हुए प्रकरणों में  अनियमितता का आरोप।
डॉ0 नवनीत मोहन    - देवास कलेक्टर रहते हुए चुनाव के दौरान गड़बड़ी करने का आरोप।
विनोद कटेला    - आयुक्त जबलपुर रहते हुए नियम विरूद्व आदेश पारित करने का आरोप।
बीएम शर्मा        - सीईओ जिला पंचायत रहते हुए नरेगा के तहत औजारों की खरीद में  गड़बड़ी का आरोप।
राजेश प्रसाद        - मंत्रालय में शिष्टाचार अधिकारी रहते हुए आर्थिक अनियमितता करना।


Dec 14, 2011

प्रदेश की डूबी आर्थिक नैया आमदनी अठन्नी खर्चा रूपैया




 भाजपा सरकार भले ही कितने ही दावे करें कि उनका खजाना लबालब भरा हुआ है, लेकिन असलियत यह है कि आमदनी तो कम हो रही है और खर्च ज्यादा हो रहा है। वित्त मंत्री राघवजी ने वित्त विभाग पर अनुशासन की नकेल तो डाल रखी है, लेकिन उस दिशा में अभी तक सार्थक परिणाम नहीं मिल रहे हैं। टैक्स भी लगातार घट रहे हैं जो कि सरकार और प्रदेश के लिए खतरे की घण्टी है।

 मध्यप्रदेश के सरकारी खजाने की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। केंद्रीय करों सहित स्वयं के टैक्स से उसे छह माह के भीतर जहां 30 हजार 148 करोड़ की आय हुई, वहीं आयोजना सहित अन्य खर्चों पर 33 हजार 985 करोड़ रूपए व्यय हो गया है। यदि केंद्रीय करों से एमपी को पैसा नहीं मिलता तो क्या दशा होती, यह सोचनीय पहलू है, जबकि राज्य को स्वयं के करों से मात्र 12 हजार 568 करोड़ से ही संतोष करना पड़ा है।
    प्रदेश की भाजपा सरकार पिछले सात साल से ओवर ड्रा की स्थिति में तो नहीं रही, इसके बावजूद सरकारी खजाने की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। मध्यप्रदेश को पिछले छह माह के दौरान कुल 30 हजार 148 करोड़ का राजस्व आय प्राप्त हुआ, इसमें टैक्स के रूप में मिली 21 हजार 819 करोड़ की राशि भी शामिल है, जबकि राज्य को स्वयं के करों से बहुत कम यानि 12 हजार 568 करोड़ रूपए से ही संतोष करना पड़ा। वैसे यह राशि भी वर्ष 2009-10 की तुलना में 17.81 प्रतिशत अधिक रही है, फिर भी आयोजना तथा आयोजनेत्तर खर्चों पर व्यय हुई राशि पर नजर डाली जाए तो प्रदेश की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। पिछले छह माह के दौरान 33 हजार 985 करोड़ राशि खर्च हो चुकी है।
केंद्रीय करों में हुई कमी:
    प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले छह माह के दौरान राजस्व व्यय 25 हजार 391 करोड़ का हुआ है, जबकि पूंजीगत व्यय पर 5 हजार 616 करोड़ की राशि खर्च हुई है। उधार और अग्रिम पर जहां 2 हजार 976 करोड़ का व्यय हुआ है, वहीं राजकोषीय घाटा 3 हजार 463 करोड़ हो गया है। केंद्रीय करों से एमपी को हिस्से के रूप में जहां 9 हजार 250 करोड़ की राशि मिली, वहीं केंद्र से सहायक अनुदान के रूप में 4 हजार 831 करोड़ तथा पूंजीगत राजस्व प्राप्तियों से मात्र 1631 करोड़ की राशि मिल सकी है।
डांवाडोल हो रहा सरकारी खजाना:
    राज्य सरकार को स्वयं के अलावा केंद्रीय करों से जहां 21 हजार 819 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ, वहीं खर्चें की स्थिति पर नजर डाली जाए तो यह 33 हजार 985 करोड़ हो गया है। यानि आय से कहीं अधिक 3 हजार 837 करोड़ का व्यय हुआ है। इससे प्रदेश के सरकारी खजाने की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।
बढ़ता जा रहा है कर्ज:
    मध्यप्रदेश सरकार पर हर वर्ष 5 से 7 हजार करोड़ का कर्ज चढ़ता जा रहा है और इस पर कमी लाने की राज्य सरकार की कतई चिंता नहीं है। यही कारण है कि वर्ष 2010 को 31 मार्च की स्थिति 57 हजार करोड़ से कही अधिक बढक़र 73 हजार करोड़ तक पहुंच गया है।

Dec 13, 2011

दस हाथ वाला हुआ अब शोले का ठाकुर



कुछ महीनों पहले शिवराज सरकार के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर में यह कहकर भाजपा की राजनीति को गर्म कर दिया था कि उनके हाथ शोले के ठाकुर की तरह बंधे हुए हैं। बयान पर काफी राजनीति होने के बाद बयानवीर विजयवर्गीय ने अपना रूख बदला और सफाई में सीएम चौहान की जमकर स्तुति गान की, जिसका परिणाम यह रहा कि छ: माह बाद सीएम चौहान के किचिन कैबिनेट में एक बार फिर मुख्य भूमिका अदा करने लगे हैं।
 अपनी तुलना शोले के हाथ कटे ठाकुर से करने वाले उद्योगमंंंंत्री कैलाश विजयवर्गीय अब अपने पुराने बयान से भी पलट गये है कि कभी उन्होंने शोले के ठाकुर से अपनी तुलना की थी, बल्कि अब तो यह भी कहने लगे है कि ठाकुर के हाथ फिर वापस आ गये हैं।
    कोई एक साल से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का पर्दे के पीछे से विरोध कर रहे उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय अचानक क्यों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ कदम-ताल करते नजर आ रहे हैं। इसके पीछे की कहानी यह है कि मुख्यमंत्री जब संकटों में घिरने लगे, तो उन्हें अपने पुराने साथियों की याद सताने लगी और वे अपने संकटों से बाहर निकलने के लिए साथियों की मदद मांगने लगे। यह स्थिति बनी विपक्ष द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव से। इस दौरान विजयवर्गीय ने मुख्यमंत्री चौहान का भरपूर सपोर्ट किया और मदद करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। सूत्रों का कहना है कि विजयवर्गीय चाहते हैं कि किसी भी तरह से वे एक बार फिर से सरकार में ताकतवर मंत्री की भूमिका अदा करें, क्योंकि अभी तक चौहान ने उन्हें किनारे कर रखा है।
विजयवर्गीय के पास दस विभाग:
    संभवत: पूरी कैबिनेट में विजयवर्गीय इकलौते कैबिनेट मंत्री है, जिनकी झोली में एक नहीं बल्कि दस विभागों का जिम्मा है। काबीना मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को 28 अक्टूबर, 2011 को जैव विविधता और जैव प्रौद्योगिकी विभाग का जिम्मा भी मिला है। इसके साथ ही विजयवर्गीय के विभागों की संख्या बढक़र दस हो गई है और अब उनकी इच्छा लोक निर्माण विभाग को पाने की है। इस विभाग में विजयवर्गीय ने खासी पैठ बना ली थी और उस पर वे फिर से आना चाहते हैं।
उद्योगपतियों को आकर्षित कर पाये:
    भाजपा की पिछली सरकार में लोक निर्माण विभाग के मंत्री रहे विजयवर्गीय को दोबारा सरकार बनने के बाद वाणिज्य, उद्योग एवं रोजगार के साथ सूचना प्रौद्योगिकी, विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी, सार्वजनिक उपक्रम, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण, ग्रामोद्योग विभाग दिए थे। खजुराहो में हुई दूसरी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट सहित निवेशकों को आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री के साथ विदेश दौरे भी उनके पास ये विभाग आने के बाद हुए। पिछले महीनों में मुख्यमंत्री के साथ विजयवर्गीय ने चीन दौरा किया था। राज्यपाल की अनुमति मिलने के बाद 25 अक्टूबर को 01 नवंबर 2009 को जारी हुए मंत्रियों के कार्य आवंटन में आंशिक संशोधन कर जैव विविधता एवं जैव प्रौद्योगिकी का कार्य भी विजयवर्गीय को सौंप दिया गया है। विजयवर्गीय के अनुसार उन्हें अभी नए विभाग मिलने की जानकारी नहीं है। जैव विविधता एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग लगभग एक साल से मुख्यमंत्री के पास थे। वर्ष 2008 में इनका जिम्मा तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्रा को दिया गया था।
लावारिस से हैं दोनों विभाग:
    मध्यप्रदेश सरकार के विभागों की सूची में शामिल जैव विविधता एवं जैव प्रौद्योगिकी विभागों को भले ही अंतर्राष्ट्रीय तौर पर महत्वपूर्ण माना जाता हो, लेकिन प्रदेश में इनकी स्थिति ठीक नहीं है। फिलहाल इसके प्रमुख सचिव पशुपालन विभाग के पीएस प्रभांशु कमल हैं। मामूली बजट और बेहद कम अमले वाले इस विभाग की वेबसाइट पर अभी भी रूस्तम सिंह ही विभागीय मंत्री हैं, जबकि वे 2008 में विधानसभा का चुनाव हार कर सरकार से बाहर हो गए थे।

Dec 7, 2011

आत्ममंथन के लिये शिव का एकांतवास


हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र को उनके मंत्री विदुर ने समझाते हुए कहा था कि 
कर्मणां तु प्रशस्तानामनुष्ठानं सुखावहम। तेषामेवाननुष्ठानं पश्चातपकारं मतम्।। 
अर्थात उत्तम कर्मो का अनुष्ठान तो सुख देने वाला होता है,किंतु उन्ही का अनुष्ठान न किया जाये तो वह पश्चाताप का कारण बन जाता है। संभवत: इन्ही नीति वाक्यों का अनुसरण करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री एक दिन के एकांतवास के बाद भोपाल लौटे हैं। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लगे व्यक्तिगत आरोपों से आहत मुख्यमंत्री अपने परिवार के साथ आत्ममंथन करने कुकरूखमला गये थे और इस मंथन का असर शीघ्र ही मंत्रिमंडल की उठापटक के रूप मे दिखने की संभावना है।
      सतपुड़ा के घने जंगल की वादियां वैसे ही साधु महात्माओं के लिए साधना स्थली रही है। इन्हीं जंगलों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी पत्नी साधना सिंह के साथ अवकाश और आत्म चिंतन के लिए पहुंचे। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भी आत्मचिंतन की बात कही थी। मंगलवार सुबह सीएम का उडऩखटोला बैतूल से करीब 65 किमी दूर कुकरूखामला की पहाडिय़ों पर बनाए गए अस्थायी हेलीपेड पर सुबह 11.10 बजे उतरा। कलेक्टर बी. चन्द्रेशखर और एसपी बीएस चौहान ने उनकी अगवानी की। सीएम अपनी पत्नी के साथ कार से सीधे वन विभाग के उस रेस्ट हाउस में पहुंचे, जो समुद्र तल से करीब 3800 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। 1905 में बने इस रेस्ट हाउस में दो कमरे हैं। यहीं पर सीएम का चौबीस घंटे रहने का प्लान है। कुछ मिनटों बाद ही सीएम ने कलेक्टर और एसपी समेत अन्य अधिकारियों को भी जिला मुख्यालय के लिए रवाना कर दिया। मुख्यमंत्री ने स्थानीय नेताओं और अन्य लोगों से भी मिलने से इंकार कर दिया। सिर्फ भैंसदेही एसडीएम केएस सेन और स्थानीय टीआई ही व्यवस्थाओं और सुरक्षा के लिए वहां रहे। सीएम के साथ उनका पर्सनल स्टाफ भी है। समझा जाता है कि विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान मुख्यमंत्री पर जो व्यक्तिगत आरोप लगे वे मुख्यमंत्री को आहत करने वाले थे।
एकांतवास क्यों?
अमूमन सदन में बेहद जरूरी होने पर ही अपनी बात कहने वाले सीएम ने तब विपक्ष के आरोपों के दौरान अध्यक्ष से कहा था कि जब वे इनका जबाव दें जब विपक्ष उनकी पूरी बात सुनें। इस बार अविश्वास प्रस्ताव के दौरान नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह समेत कई कांग्रेसी विधायकों ने उनके परिवार के सदस्यों पर कई गंभीर आरोप लगाये थे। जैसे ही विधानसभा सत्र खत्म हुआ, उसके बाद सरकारी कामकाज को पूरा करने के साथ ही मुख्यमंत्री ने अवकाश और आत्मचिंतन की इच्छा जाहिर की। उनके एक करीबी ने कुकरूखामला की वादियों को इनके लिए आदर्श बताया और मुख्यमंत्री ने बैतूल में एक स्थानीय करीबी से इसकी जानकारी लेकर कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया।