मध्यप्रदेश का कृषि व्यवसाय दिनों-दिन पटरी से उतर रहा है। हताश और निराश हो चुके किसान सरकार की नीतियों से परेशान हो गये हैं जिसके चलते वे आत्महत्या करने पर भी विवश हो रहे हैं। मप्र के किसानों के आत्महत्या का आलम यह है कि हर साल आत्महत्या का ग्राफ बढता ही रहा है। इसके बाद भी यह सच है कि राज्य में गेहूं का उत्पादन इस बार रिकार्ड तोडऩे वाला है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार 100 लाख मीट्रिक टन के गेहूं की बंपर उत्पादन होने की संभावना है जिसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है। वही कृषि शिक्षा और शोध को अग्रणी रखने वाले कृषि विवि मे वेतन और पेंशन के लाले पड़ रहे हैं।
भोपाल। कृषि क्षेत्र को बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए कृषि शिक्षा में लाखों, करोड़ों रूपये हर साल केंद्र सरकार और राज्य सरकारें खर्च कर रही हैं। इससे उलट मप्र की कृषि शिक्षा को अग्रणी रखने वाले कृषि विश्वविद्यालय को राशि के लिए मुंह ताकना पड़ रहा है। विवि के अधिकारी कई बार राजधानी आकर सरकार के सामने झोली फैला चुके हैं। प्रदेश में ग्वालियर स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के जरिए भले ही बड़े अनुसंधान और बेहतर छात्र दिए जा रहे हों, लेकिन उसकी माली हालत बिगड़ती जा रही है। बदहाली का आलम यह है कि अब वेतन और पेंशन देने के लाले पड़ गए हैं। विवि का विखंडन हो जाने के बाद तो स्थिति और ज्यादा बिगड़ी है। वित्त से त्रस्त हो चुके विवि के पास खर्च तो रूपये का है, लेकिन आमदनी चवन्नी की बनी हुई है। यहां तक कि विवि के अधिकतर पद प्रभारियों के भरोसे ही चलाए जा रहे हैं। उन्हें भरने के बाद वेतन देने की समस्या से जूझने की हिम्मत भी नहीं बची है।
लगातार बढ़ रहा है घाटा:
विवि की स्थापना वर्ष 1964 में की गई। तब से लेकर अब तक साल-दर-साल घाटे की चादर ने पैर पसारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। खुलने से लेकर 19 दिसंबर, 2011 तक विवि का घाटा एक अरब 24 करोड़ तक जा पहुंचा है। इसके लिए राज्य सरकार की ओर से सहायता के प्रयास विफल ही माने जा रहे हैं।
बंट गई खुद की आमदनी:
कृषि विवि को विखंडित करते हुए ग्वालियर में एक नया कृषि विवि खोला गया। इसके साथ ही जबलपुर में वेटरनरी विवि की स्थापना की गई। दो विस्तार हो जाने से कृषि विवि की खुद के स्त्रोतों से होने वाली आमदनी आधी से भी कम हो गई। वर्तमान में सालाना 6 करोड़ की आय विवि अपने फार्म और अन्य जगहों से अर्जित कर रहा है, लेकिन विखंडन से पहले यह आय सालाना 18 करोड़ रूपये हुआ करती थी। इसमें बची हुई आय के स्त्रोत अब वेटरनरी विवि और ग्वालियर कृषि विवि के खाते में जा पहुंचे हैं।
विवि में खर्च ज्यादा, लाभ कम:
कृषि विवि को हर महीने 5 करोड़ रूपये वेतन और पेंशन के लिए चुकाने पड़ रहे हैं। इसमें एक करोड़ 50 लाख रूपये पेंशन के लिए और 3 करोड़ वेतन में दिया जा रहा है, लेकिन वेतन और पेंशन देने के लिए राशि समय पर नहीं मिल रही है। आईसीएआर यानि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अपने प्रोजेक्ट और उसमें काम करने वाले कर्मचारियों के लिए 34 करोड़ 30 लाख रूपए दे रहा है, लेकिन इस राशि का उपयोग कभी न कभी वेतन बांटने के लिए करना ही पड़ रहा है, जिससे परियोजनाओं की चाल भी धीमी होती जा रही है। वित्त की समस्या को सुलझाने पिछले तीन सालों में दर्जनों दफा राज्य सरकार स्तर पर चर्चाएं और बैठकों का आयोजन किया गया, लेकिन नतीजा अब तक नहीं निकाला जा सका है।
हर महीने हाय-तौबा:
प्राप्त जानकारी के अनुसार, पेंशन के लिए पिछले महीनों में 10 करोड़ रूपये देने का वायदा किया गया, लेकिन अभी तक यह राशि स्वीकृत नहीं की जा सकी। कृषि विवि के अधीन आने वाले महाविद्यालयों में भी कर्मचारी हर महीने वेतन को लेकर, तो पेंशनर्स अपनी पेंशन के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। निष्ठावान जनप्रतिनिधियों की ओर से विधानसभा में उठाए जा रहे सवालों के बाद जवाब भी दिए जाते रहे हैं, लेकिन अभी तक विवि प्रबंधन कर्मचारियों के लिए छठवें वेतनमान का एरियर्स और अन्य भुगतान करने में सक्षम नहीं हो सका है।
विवि और कृषि:
राज्य सरकार दे रही: 30 करोड़ 27 लाख 94 हजार रूपये सालाना
विवि को चाहिए: 92 करोड़ 58 लाख 27 हजार रूपये सालाना
वर्ष 2011-12 में शुद्व घाटा: 55 करोड़ 53 लाख 57 हजार सालाना
1964 से 2011 तक घाटा: 1 अरब 24 करोड़