Feb 27, 2012

कृषि बजट के पहले ही कंगाल हुए कृषि विवि



मध्यप्रदेश का कृषि व्यवसाय दिनों-दिन पटरी से उतर रहा है। हताश और निराश हो चुके किसान सरकार की नीतियों से परेशान हो गये हैं जिसके चलते वे आत्महत्या करने पर भी विवश हो रहे हैं। मप्र के किसानों के आत्महत्या का आलम यह है कि हर साल आत्महत्या का ग्राफ बढता ही रहा है। इसके बाद भी यह सच है कि राज्य में गेहूं का उत्पादन इस बार रिकार्ड तोडऩे वाला है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार 100 लाख मीट्रिक टन के गेहूं की बंपर उत्पादन होने की संभावना है जिसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है। वही कृषि शिक्षा और शोध को अग्रणी रखने वाले कृषि विवि मे वेतन और पेंशन के लाले पड़ रहे हैं।
भोपाल। कृषि क्षेत्र को बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए कृषि शिक्षा में लाखों, करोड़ों रूपये हर साल केंद्र सरकार और राज्य सरकारें खर्च कर रही हैं। इससे उलट मप्र की कृषि शिक्षा को अग्रणी रखने वाले कृषि विश्वविद्यालय को राशि के लिए मुंह ताकना पड़ रहा है। विवि के अधिकारी कई बार राजधानी आकर सरकार के सामने झोली फैला चुके हैं। प्रदेश में ग्वालियर स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के जरिए भले ही बड़े अनुसंधान और बेहतर छात्र दिए जा रहे हों, लेकिन उसकी माली हालत बिगड़ती जा रही है। बदहाली का आलम यह है कि अब वेतन और पेंशन देने के लाले पड़ गए हैं। विवि का विखंडन हो जाने के बाद तो स्थिति और ज्यादा बिगड़ी है। वित्त से त्रस्त हो चुके विवि के पास खर्च तो रूपये का है, लेकिन आमदनी चवन्नी की बनी हुई है। यहां तक कि विवि के अधिकतर पद प्रभारियों के भरोसे ही चलाए जा रहे हैं। उन्हें भरने के बाद वेतन देने की समस्या से जूझने की हिम्मत भी नहीं बची है।
लगातार बढ़ रहा है घाटा:
    विवि की स्थापना वर्ष 1964 में की गई। तब से लेकर अब तक साल-दर-साल घाटे की चादर ने पैर पसारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। खुलने से लेकर 19 दिसंबर, 2011 तक विवि का घाटा एक अरब 24 करोड़ तक जा पहुंचा है। इसके लिए राज्य सरकार की ओर से सहायता के प्रयास विफल ही माने जा रहे हैं।
बंट गई खुद की आमदनी:
    कृषि विवि को विखंडित करते हुए ग्वालियर में एक नया कृषि विवि खोला गया। इसके साथ ही जबलपुर में वेटरनरी विवि की स्थापना की गई। दो विस्तार हो जाने से कृषि विवि की खुद के स्त्रोतों से होने वाली आमदनी आधी से भी कम हो गई। वर्तमान में सालाना 6 करोड़ की आय विवि अपने फार्म और अन्य जगहों से अर्जित कर रहा है, लेकिन विखंडन से पहले यह आय सालाना 18 करोड़ रूपये हुआ करती थी। इसमें बची हुई आय के स्त्रोत अब वेटरनरी विवि और ग्वालियर कृषि विवि के खाते में जा पहुंचे हैं।
विवि में खर्च ज्यादा, लाभ कम:
कृषि विवि को हर महीने 5 करोड़ रूपये वेतन और पेंशन के लिए चुकाने पड़ रहे हैं। इसमें एक करोड़ 50 लाख रूपये पेंशन के लिए और 3 करोड़ वेतन में दिया जा रहा है, लेकिन वेतन और पेंशन देने के लिए राशि समय पर नहीं मिल रही है। आईसीएआर यानि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अपने प्रोजेक्ट और उसमें काम करने वाले कर्मचारियों के लिए 34 करोड़ 30 लाख रूपए दे रहा है, लेकिन इस राशि का उपयोग कभी न कभी वेतन बांटने के लिए करना ही पड़ रहा है, जिससे परियोजनाओं की चाल भी धीमी होती जा रही है। वित्त की समस्या को सुलझाने पिछले तीन सालों में दर्जनों दफा राज्य सरकार स्तर पर चर्चाएं और बैठकों का आयोजन किया गया, लेकिन नतीजा अब तक नहीं निकाला जा सका है।
हर महीने हाय-तौबा:
    प्राप्त जानकारी के अनुसार, पेंशन के लिए पिछले महीनों में 10 करोड़ रूपये देने का वायदा किया गया, लेकिन अभी तक यह राशि स्वीकृत नहीं की जा सकी। कृषि विवि के अधीन आने वाले महाविद्यालयों में भी कर्मचारी हर महीने वेतन को लेकर, तो पेंशनर्स अपनी पेंशन के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। निष्ठावान जनप्रतिनिधियों की ओर से विधानसभा में उठाए जा रहे सवालों के बाद जवाब भी दिए जाते रहे हैं, लेकिन अभी तक विवि प्रबंधन कर्मचारियों के लिए छठवें वेतनमान का एरियर्स और अन्य भुगतान करने में सक्षम नहीं हो सका है।
विवि और कृषि:
    राज्य सरकार दे रही: 30 करोड़ 27 लाख 94 हजार रूपये सालाना
    विवि को चाहिए: 92 करोड़ 58 लाख 27 हजार रूपये सालाना
    वर्ष 2011-12 में शुद्व घाटा: 55 करोड़ 53 लाख 57 हजार सालाना
    1964 से 2011 तक घाटा: 1 अरब 24 करोड़

जारी है प्रभात की पत्रगत राजनीति




 मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा का चि_ी प्रेम जग-जाहिर है। वह हमेशा पत्रों के माध्यम से ऐसी राजनीति करते हैं कि विरोधियों को भी पानी-पानी करने में देर नहीं करते। जब से झा ने भाजपा की कमान संभाली है तभी से पत्रों के जरिए उनकी राजनीति गर्म हो रही है। सबसे पहले पत्रों के जरिये ही कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह पर हमला बोला था, फिर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को भी पत्र के जरिए घेरने की कोशिश की है। अब उनके निशाने पर केंद्र की यूपीए-2 आ गई है। हाल ही में झा ने एक पत्र लिखकर केंद्र सरकार से करों में छूट की मांग की है। इससे साफ जाहिर है कि झा अपने पत्रों की राजनीति को लगातार गर्म करना चाहते हैं।

भोपाल। प्रदेश के साथ देश का भी आम बजट पेश होने वाला है, तो भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को पत्र लिखकर सुझाव दे दिए। जबकि प्रदेश सरकार को उन्होंने बजट को लेकर कोई सुझाव नहीं दिए,न ही प्रदेश की भाजपा सरकार ने पार्टी के मुखिया से सुझाव मांगे। प्रदेश सरकार ने पेट्रोल, डीजल पर इतना टैक्स लगाया हुआ है कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है, इस टैक्स को कम करने की बात कोई नहीं कर रहा, लेकिन राजनीति के लिए केंद्र की कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष ने कई सुझाव देते हुए पत्र जरूर लिखा है।
    पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के कारण इस बार 2012-13 का बजट फरवरी के बजाय मार्च में पेश किया जाएगा। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष राज्यसभा सांसद प्रभात झा ने प्रधानमंत्री व वित्त मंत्री को आम बजट के लिए कई सुझाव दिए हैं, इसमें आयकर सीमा बढ़ाकर 5 लाख रूपए किया जाए। मध्यप्रदेश सरकार की तर्ज पर किसानों को फसल कर्ज 1 प्रतिशत ब्याज पर दिया जाए, इसमें ऋण ग्रस्तता में कमी आएगी। देश में खाद्य सुरक्षा कानून को प्रभावी बनाया जा रहा है,  लेकिन उसके अनुकूल खाद्यान्न उत्पादन तभी संभव है जब उत्पादकता में वृद्धि की जाये। इसके लिए हर खेत को पानी देना अनिवार्यता होगी। सिंचाई को समवर्ती सूची में शामिल किया जाए। उन्नत बीजों को बोये जाने का प्रचलन बढ़ा है। इसके लिए सिंचाई आवश्यक है। डीजल की कीमतें बढ़ चुकी हैं। बिजली के दाम बढ़ाने से सिंचाई महंगी हुई है। बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार राज्यों में कृषि भूमि की उपलब्धता के अनुसार इस कार्य हेतु अनुदान का प्रावधान बजट में करें जिससे की किसानों को सिंचाई हेतु बिजली राज्य सरकारें अनुदान प्राप्त दरों (न्यूनतम दरों) पर प्रदाय कर सके। शिक्षा के विस्तार के साथ शिक्षा का निजीकरण होने से शिक्षा महंगी हुई है। अत: स्नातक, स्नातकोत्तर शिक्षा हेतु 1 प्रतिशत ब्याज पर कर्ज उपलब्ध कराने का प्रावधान किया जाये। शिक्षित बेरोजगार युवकों के लिए बेरोजगार बीमा योजना तथा भत्ते का विशेष प्रावधान किया जाए। प्रशिक्षित व्यवसायों में लगे गरीब, निर्धन, अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के युवकों को लघु उद्योग व्यवसाय के लिए ब्याज मुक्त ऋण उपलब्ध कराने का प्रावधान किया जाए। पेट्रोल, डीजल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए बिजली बैटरी संचालित वाहनों की खरीद पर आर्थिक अनुदान दिये जाने का प्रावधान किया जाये तथा एक समयबद्ध योजना बनाई जाये जिससे हर आम आदमी की परिवहन हेतु पेट्रोल, डीजल पर निर्भरता कम हो सके। राष्ट्रीय महत्व के अधोसंरचना विकास के प्रकल्पों को न्यूनतम दरों पर ऋण और करों में छूट का प्रावधान किया जाये। राष्ट्रीय अधोसंरचना बैंक जैसी वित्तीस संस्था का गठन किया जाए। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने प्रधानमंत्री और वित्त को 8 सुझाव दिए हैं।
वैट पर भी राजनीति:
    प्रदेश में भाजपा की सरकार है और इस सरकार ने पेट्रोल, डीजल पर देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक वैट टैक्स लगाया हुआ है, इसे कम करने के लिए पार्टी की ओर से पहल की जाना चाहिए। पेट्रोल, डीजल के बढ़ते दामों को देखते हुए बैटरी संचालित वाहनों पर अनुदान दिए जाने की बात भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष कर रहे हैं, परंतु प्रदेश में आम आदमी को पेट्रोल, डीजल पर कम टैक्स देना पड़े और वह सस्ता मिले, इस संबंध में वह मौन हैं।
टे्रनों में मांगा कोटा:
    भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा ने रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को पत्र लिखकर चैन्नई-जयपुर और कोयम्बटूर-जयपुर एक्सप्रेस गाडिय़ों में भोपाल के लिए पूर्व आवंटित कोटा बहाल करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि पूर्व में इन टे्रनों में एसी-1, एसी-2, एसी-3 और स्लीपर में क्रमश: 2, 2, 2 और चार बर्थ का आकस्मिक कोटा था जिसे बाद में समाप्त कर दिया है। इससे भोपाल से जयपुर जाने वाले यात्रियों के सामने मुसीबत खड़ी हो गई है।

Feb 25, 2012

सरकार अब खुद बन बैठी साहूकार



 भले ही मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने साहूकारों पर लगाम कसने के लिए साहूकारी अधिनियम कानून को कडक़ बना दिया है, लेकिन तब भी प्रदेश की गली-गली में फैले साहूकारों की दादागिरी न सिर्फ फल-फूल रही है, बल्कि उनका कारोबार दिन-दूना रात चौगुना बढ़ता ही जा रहा है। प्रदेश के गरीब किसान और मजदूरों की जिंदगी साहूकारों के घरों पर गिरवी रखी हुई है। यहां तक कि कर्ज में डूबे किसानों ने तो अपने खेत तो गिरबी रखे ही हुए हैं, बल्कि अन्य सम्पत्ति भी गिरवी रखने में पीछे नहीं रहे हैं।
भोपाल। मप्र सरकार ने एक साल पहले 15 जनवरी 2011 को साहूकारों पर नकेल कसने के लिए सख्त कानून बनाया था, लेकिन उसका असर राज्य में कहीं भी देखने को नहीं मिल रहा है, बल्कि साहूकारों के शिकंजे में फंसकर आम आदमी मौत को जरूर गले लगा रहा है। प्रदेश में साहूकारों के चंगुल में फंसे करीब एक दर्जन लोगों ने अब तक आत्महत्या कर ली है। साहूकारों का कारोबार सबसे अधिक महाकौशल और मालवा में फल-फूल रहा है। बुंदेलखंड में भी इसकी धमक यथावत् कायम है।
    गेहूं खरीदी के दौरान किसानों से कर्ज वसूली की तैयारी कर रही राज्य सरकार खुद साहूकार बन बैठी है। यही वजह है कि किसानों को गले-गले तक कर्ज के जाल में फंसाने वाले साहूकारों पर कार्यवाही के लिए खुद के बनाए कानून पर भी सरकार ने अमल नहीं किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में 21 जून 2011 को हुई कैबिनेट की बैठक में मप्र साहूकारी अधिनियम 1938 में संशोधन करते हुए गैर लायसेंसी साहूकारों द्वारा दिए गए कर्ज को शून्य घोषित करने का निर्णय लिया गया था। इसी संशोधन में यह भी जोड़ा गया था कि अब साहूकारी के लिए लायसेंस लेना जरूरी होगा और कृषि ऋण पर ब्याज दर का निर्धारण भी सरकार करेगी। कहा यह भी गया था कि यदि कोई गैर लायसेंसी साहूकार कर्ज देता है, तो वह शून्य समझे जाएंगे और ऐसे ऋणों की वसूली किसी भी अदालत के माध्यम से नहीं की जा सकेगी, लेकिन इन नौ महीने में एक भी किसान को इसका लाभ नहीं मिला। श्री चौहान ने 15 जनवरी 2011 को घोषणा की थी कि सरकार किसानों को साहूकारों के चंगुल से मुक्त करवाएगी। फिर अधिनियम में संशोधन किया गया। घोषणा पूरी करने के लिए कागजों में तो संशोधन हो गया पर इसका कोई लाभ किसानों को अब तक नहीं मिला।
ऋण में डूबे किसान हुए दरकिनार:
    खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए अलग से कृषि कैबिनेट और विधानसभा के बजट सत्र में कृषि बजट लाने की तैयारी कर रही, सरकार के ये सभी प्रयास सिर्फ दिखावा साबित हो रहे हैं। कर्ज के बोझ से दबे किसान सरकार के एजेंडे में नहीं हैं। स्वर्णिम मप्र के लिए तय किए गए 70 संकल्पों से लेकर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर हुए मुख्यमंत्री के भाषणों में कर्ज से दबे किसानों का कहीं कोई जिक्र नहीं है। विभागों की समीक्षा बैठकों में भी कभी इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई। साहूकारी अधिनियम में संशोधन करने के बाद सरकार ने जिलों को नए कानून के मुताबिक कार्यवाही शुरू करने के लिए भी अब तक कोई दिशा-निर्देश तक जारी नहीं किए। नया कानून आने के बाद प्रदेश के किसी भी जिले में यह जानने की कोशिश स्थानीय प्रशासन ने नहीं की, कि किसानों को मोटे ब्याज पर ऋण बांटने वाले साहूकारों के पास लायसेंस हैं या नहीं। न ही गैर लायसेंसी साहूकारों द्वारा दिए गए कर्ज को शून्य घोषित करने के संबंध में कोई कार्यवाही हुई।
आयोग का नजरिया साहूकार चारो तरफ:
    मानव अधिकार आयोग की सरकार को भेजी गई इस रिपोर्ट में भी कहा गया है कि मप्र में ऐसे साहूकार चारों तरफ फैले हुए हैं, जो किसानों की मजबूरी का फायदा उठाने के लिए महेशा तैयार रहते हैं। ऐसे साहूकारों के कारण किसान आत्महत्या भी कर लेता है। रिपोर्ट के अनुसार आयोग को जिलों से मिली जानकारी के अनुसार ऐसे किसी भी मामले में किसी भी साहूकार के खिलाफ न तो आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया और न ही उसके खिलाफ आपराधिक प्रकरण चलाया गया।
साहूकारी अधिनियम और मप्र:
    15 जनवरी 2011 को मुख्यमंत्री की घोषणा
    21 जून 2011 को कैबिनेट सेे पारित
क्या-क्या बदलाव:
    साहूकारी के लिए लायसेंसी जरूरी
    गैर लायसेंसी साहूकारों के ऋण शून्य
    लायसेंसी साहूकारों की संख्या भी नहीं
    कागजों में बदला कानून, हकीकत जस की तस
    साहूकारों के कारण भी आत्महत्या कर रहे किसान
    ऋण वसूली के लिए किसानों पर दवाब डालते
    साहूकारी कानून लागू नहीं कर पाई सरकार
    नौ महीने बीत एक भी किसान को नहीं फायदा
    मानव अधिकार आयोग की रिपोर्ट हवा में उड़ी
    सरकार-साहूकार साथ-साथ कर रहे वसूली।