Feb 23, 2013

निशाने पर हैट्रिक कटेगें मंत्री और विधायकों के टिकट

तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा उन मंत्रियों और विधायकों के इस बार पर कतर सकती है, जो या तो क्षेत्र में तो निष्क्रिय हैं या उनकी भूमिका भी संदिग्ध हो गई है। करीब 80 से 100 विधायकों को बदले जाने की चर्चाएं हैं। इस संबंध में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने स्तर पर सर्वे कराया है, तो संगठन ने भी अलग-अलग एजेंसियों से मंत्रियों और विधायकों का फीडबैक बुलाया है जिसमें काफी विधायकों के टिकट कटने के आसार बढ़ गये हैं।
भोपाल,देवेन्द्र मिश्रा। भाजपा मे तीसरी बार सत्ता की वैतरणी पार करने के लिए हर संभव हथकंडे अपनाने पर विचार किया जा रहा है ताकि मध्यप्रदेश में तीसरी बार सत्ता हासिल की जा सके। सत्ता और संगठन पर मुख्यमंत्री और नरेंद्र सिंह तोमर ही सारे निर्णय लेंगे। 230 विधानसभा क्षेत्रों में से उन विधायकों को इस बार फिर मौका नहीं देने पर विचार किया जा रहा है, जो कि 500 से 1000 वोट के अंतर से जीते थे और उन्होंने बीते पांच साल में इस वोट प्रतिशत को बढ़ाने में कोई खास मशक्कत नहीं की। यहां तक कि नगरीय निकाय, पंचायत, मंडी और सहकारिता चुनाव में भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा है। ऐसे विधायकों को घर बैठाने का पार्टी ने इरादा बना लिया है। इसके साथ ही जिनकी छवि अपने विधानसभा क्षेत्र में धूमिल हो गई है उन्हें भी टिकट नहीं देने का इरादा बना लिया गया है।
    इस छटनी की जानकारी लगते ही आजकल मध्यप्रदेश के मंत्रियों और विधायकों ने दिल्ली में एक-एक आका खोज लिया है और वे अपने उन्हीं आकाओं के सहारे फिर से टिकट लेने के लिए जोड़-तोड़ भी कर रहे हैं। गुजरात में नरेंद्र मोदी ने नये चेहरों पर दांव खेला था, इसी प्रयोग को मध्यप्रदेश में लागू किया जाना है, लेकिन मप्र में यह थोड़ी कठिन डगर है। इस दिशा में चौहान और तोमर विचार जरूर कर रहे हैं, लेकिन विरोध को देखते हुए कुछ चेहरों पर फिर से दांव भी लगाया जा सकता है।
प्रदेशाध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने साफ संकेत दिए हैं कि सत्ता में वापसी के लिए भाजपा कमजोर विधायक और मंत्रियों के टिकट काटेगी। एक बात सभी जानते हैं कि नरेंद्र सिंह तोमर कभी भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लाइन से बाहर नहीं जाते। वे विधायक सकते में हैं, जिनकी स्थिति पिछले चुनाव में बेहतर नहीं थी और वे अब तक इसमें सुधार भी नहीं कर पाए। दूसरी ओर तोमर के इस बयान को संगठन की ओर से सत्ता सुधार के लिए चेतावनी भी माना जा रहा है।
एंटी इन्कंबैंसी भी एक सिरदर्द:
यह भी संयोग है कि भाजपा प्रदेश मे पहली बार लगातार दस साल सत्ता में रहने का रिकार्ड बना रही है। अब उसकी तमन्ना इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव को फिर फतह करने की है। मुख्यमंत्री के तौर पर आठ साल का कार्यकाल पूरा कर चुके शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार की योजनाओं और कार्यक्रमों के दम पर भाजपा को लगता है कि इस बार भी वह चुनावी वैतरणी पार कर लेगी,लेकिन उसे विपक्षी दलों की सक्रियता से ज्यादा चिंता एंटी इन्कंबैंसी और अपने विधायकों की पुअर परफार्मेंस को लेकर है। इसीलिए मंत्रियों और विधायकों को बार-बार अपने क्षेत्र में सक्रिय रहने, जनता के बीच भेजने के जतन किए जा रहे हैं। कमजोर विधायकों की ताकत बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री खुद जिलों में जाकर अंत्योदय मेले लगवा रहे हैं। विकास कार्यों की सौगातें बांटी जा रही हैं। लोगों की समस्याएं सुनने और दूर करने के प्रबंध हो रहे हैं। इसके बाद भी स्थिति नहीं सुधरी तो पार्टी टिकट वितरण में सख्ती बरतने का मन बनाए बैठी है। पार्टी सूत्रों की मानें तो इस बार कम से कम 80 से 100 विधायकों के टिकट कटेंगे। इनमें कुछ मंत्री भी शामिल हैं, जिनके बारे में संगठन को नकारात्मक रिपोर्ट मिल रही है।
निजी एजेंसियों से सर्वे:
    प्रदेश में भाजपा फिर सरकार बनाने की संभावना और विधायकों के बारे में अलग-अलग निजी एजेंसियों से सर्वे करा रही है। सर्वे में विधायक से संबंधित सवालों के साथ उनके क्षेत्र में सरकारी योजनाओं के प्रति लोगों का रवैया और दूसरे दलों से टक्कर दे सकने वाले संभावित प्रत्याशियों के बारे में पूछा जा रहा है। जातिगत और सामाजिक समीकरणों के साथ भाजपा के भीतर चुनाव लड़ सकने वाले लोगों के नाम पर पैनल भी एजेंसी बना कर देगी। भाजपा इससे पहले भी दो राउंड का सर्वे करा चुकी है, जिसकी रिपोर्ट से कमजोर विधायकों को अवगत कराया गया था कि निजी एजेंसियों के अलावा जन अभियान परिषद ने भी अपने स्तर पर एक सर्वे किया है।

पिछले चुनाव में कटे थे टिकट:
    भाजपा ने 2008 के चुनाव के समय भी करीब 40 विधायकों के टिकट काटे थे। दो दर्जन से अधिक नेता तथा विधायकों के क्षेत्र भी बदले गए थे। उस वक्त इस बदलाव की मुख्य वजह परिसीमन था। हालांकि किसी मंत्री का टिकट नहीं काटा गया था। कुछ मंत्रियों के क्षेत्र परिसीमन की वजह से बदले गए थे, जिनमें नरोत्तम मिश्रा, अजय विश्नोई, जगदीश देवड़ा, हरिशंकर खटीक जैसे मंत्री और विधायक शामिल थे।
एक-एक विधायक पर नजर:
    भाजपा अपने 152 विधायकों में से प्रत्येक के परफार्मेन्स पर नजर रखे हुए हैं। विधायकों की सक्रियता, क्षेत्र में उनकी पकड़, विधायक को चुनौती दे सकने वाले कारण और चुनाव में उनके जीतने की संभावना आदि बिंदुओं पर विधायकों के बारे में फीडबैक लिया जा रहा है। प्रदेश संगठन महामंत्री अरविंद मेनन द्वारा बनाए गए वॉर रूम में सभी विधायकों से संबंधित रिकार्ड रखा जा रहा है। टिकट वितरण में इस रिकार्ड की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।

Mar 31, 2012

कैसे सफल हो कन्या पूजन


बढा अधर्म,बढ़ रहे पतित अपराध देश में .
बढे भेडिये इस समाज में इन्सान वेश में.
सुरा सुन्दरी राज करे,फटेहाल है किसान खेत में .
कन्या पूजन भूल गये,करे विनाश गेंग रेप में
करो संहार इन दुष्टों का,आ जाओ हिंदुस्तान देश में .
तभी सफल हो कन्या पूजन,तब हो मंगल गान देश में .

Mar 28, 2012

धरती पुत्र फिर पकड़ेगे धरती


कुछ सालों से प्रदेश में लगभग हर साल आई प्राकृतिक आपदा और शासन की अव्यवस्था के कारण कृषि व्यवसाय चौपट हो गया है और किसान लगातार कर्ज में डूबता जा रहा है। इससे पहले लिए गए ऋणों की वसूली नहीं होने पर सरकार ने इन्हें कालातीत ऋणों की सूची में डाल दिया, लेकिन वसूली की उम्मीद नहीं छोड़ी। इन सभी तरह के ऋणों की वसूली के लिए सरकार ने गेहूं उपार्जन को कम्प्यूटराइज्ड कर ई-रिकवरी का तरीका खोजा है।
भोपाल। किसी न किसी भंवर जाल में फंसे रहना प्रदेश के किसानों की नियति सी बन गई है। खाद,बीज,बिजली,पानी की समस्या आम हाने से कृषि लगातार घाटे का सौदा साबित हो रही है। प्रदेश के किसान करीब 4,000 करोड़ रूपये से ज्यादा के कर्जदार हैं। यह आंकड़ा वित्तीय वर्ष 2010-11 का है। यह कर्ज किसानों ने जिला सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों से लिया है। इसके अलावा किसानों को करीब 231 करोड़ रूपये सिंचाई विभाग के भी चुकाने हैं। किसानों ने सहकारिता ऋण खाद, बीज के लिए लिया, तो सिंचाई विभाग से ऋण पानी के लिए। बिजली का बिल भी कई किसानों ने नहीं चुकाया, लिहाजा बिजली बिलों के करोड़ों भी बकाया है।  फलत: राज्य सरकार ने कर्ज माफी का जो लुभावना सपना दिखाया था वह भी फ्लॉप साबित हुआ है।
    15 मार्च से शुरू हो चुकी उपार्जन की प्रक्रिया के दौरान किसानों से इन ऋणों की वसूली की जाने लगी है। कई स्थानों पर किसानों से कर्ज वसूला जा रहा है जिसका किसान विरोध भी कर रहे हैं। हालांकि सरकार का कहना है कि किसान की सहमति के बाद कर्ज की राशि काटी जाएगी, लेकिन सूत्र बताते हैं थोड़ी-बहुत राशि तो चुकाना ही होगी। बीते साल के आखिर में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विधायक रणवीर सिंह जाटव के एक सवाल के जवाब में सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने प्रदेश की 38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों तथा जिला सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंकों की मांग, वसूली और कालातीत ऋणों की जानकारी दी थी। इस जानकारी के मुताबिक वर्ष 2010-11 में मात्र 38 जिलों में ही मांग और वसूली में 30,040 करोड़ का अंतर है।
ऐसी है किसानों से हमदर्दी:-
    ग्वालियर जिले के उर्वा में 14 जनवरी को फर्जी ऋण का ताजा मामला सामने आया। किसान हुकुम सिंह जाट को पता ही नहीं चला और वह जिला सहकारी केंद्रीय बैंक से संबद्ध साख समिति के 81,290 रूपये का कर्जदार हो गया। नोड्यूज करवाया तब जानकारी मिली। जाट ने कलेक्टर, आईजी व एसपी को दिए आवेदन में बताया कि उसने कभी समिति से राशि नहीं निकाली और न खाद खरीदा। जमीन व टे्रक्टर 10 साल से स्टेट बैंक ऑफ  इंदौर में बंधक है। फिर भी उस पर ऋण दिखा दिया। हस्ताक्षर भी फर्जी थे।
कर्ज तो चुकाना होगा:
    मध्यप्रदेश में किसानों को खरीफ और रबी फसलों के लिए मात्र एक फीसदी ब्याज दर पर राज्य सरकार कर्ज उपलब्ध करा रही है। दोनों फसलों के लिए लिया गया कर्ज चुकाने के लिए वर्तमान में दो तारीखें निर्धारित हैं एक मार्च में और दूसरी जून में। अब एक ही बार एक ही तारीख को दोनों कर्ज की राशि चुकाने का प्रावधान हो सकता है। इस प्रस्ताव पर नाबार्ड और रिजर्व बैंक तो सहमत हैं, परंतु अभी राज्य सरकार सहमत नहीं हो पाई है।
फिर विचार-विमर्श हुआ:
    खरीफ के कर्ज को चुकाने का प्रावधान 15 मार्च तक किया गया था, जो अब 31 मार्च तक बढ़ा दिया गया है। इसी प्रकार रबी की फसल का कर्ज चुकाने 15 जून अंतिम तारीख तय है। इसमें किसानों की दिक्कतों को देखते हुए अपेक्स बैंक ने इन दोनों अंतिम तारीखों के प्रावधान का युक्तियुक्तकरण किए जाने का प्रस्ताव रखा है। इस प्रस्ताव से नाबार्ड और रिजर्व बैंक सैद्वांतिक रूप से सहमत है। राज्य सरकार भी इस पर विचार कर रही है और जल्द ही सहमति दे सकती है। प्रस्ताव के मुताबिक 30 अप्रैल की तारीख निर्धारित की जा सकती है। इस तारीख को खरीफ और रबी दोनों के लिए लिया गया कर्ज एक साथ चुकाया जा सकता है।
लिंकिंग से हो सकती मेजर रिकवरी:
    प्रस्ताव के तहत लिंकिंग से कर्ज की रिकवरी हो सकती है। समर्थन मूल्य पर गेहूं की बिक्री के साथ ही कर्ज की वसूली की जा सकती है। अनाज के बदले किए जाने वाले भुगतान से ही कर्ज की रकम की रिकवरी कर ली जाएगी।
बैंक का पक्ष:
    युक्तियुक्तकरण का प्रस्ताव दिया है। इससे रिजर्व बैंक और नाबार्ड तो सैद्धांतिक रूप से सहमत हैं, परंतु अभी इस पर राज्य सरकार को विचार करना है। इस पर भी जल्द निर्णय हो सकता है। - कैलाश सोनी, उपाध्यक्ष अपेक्स बैंक।
कर्ज की स्थिति 2010-11
38 जिला सहकारी केंद्रीय बैंक (25 नवंबर, 2011 की स्थिति):
कुल ऋण        -    8507.44 करोड़
वसूली            -    6018.30 करोड़
बकाया            -    2489.14 करोड़
38 जिला सहकारी कृषि व ग्रामीण विकास बैंक:
कुल ऋण        -    766.91 करोड़
वसूली            -    215.81 करोड़
बकाया            -    551.01 करोड़
सिंचाई विभाग का बकाया:
01 अप्रैल, 2009 तक    -    187.83 करोड़
कुल बकाया        -    231.65 करोड़
   

Mar 10, 2012

मध्यप्रदेश नही माफिया प्रदेश


यूं तो तेजी से पांव पसार रहा खनिज माफिया अब धीरे-धीरे आईएएस अफसरों पर भी निशाना साधने लगा है। यह घटनाएं आईपीएस नरेंद्र कुमार की हत्या के बाद सामने आई हैं। अब आईएएस अफसर भी खुलकर कहने लगे हैं कि खनिज माफिया तेजी से आगे तो बढ़ रहा है, लेकिन अफसरों पर हमला भी कर रहा है, जो कि चिंताजनक घटनाक्रम है। मप्र में आईएएस अधिकारी आकाश त्रिपाठी और संतोष मिश्रा पर माफिया हमले कर चुका है। वैसे तो डिप्टी कलेक्टर और अपर कलेक्टरों को पद से हटाने में माफिया ने कई बार गुल खिलायें हैं। दूसरी ओर मुरैना के बाद पन्ना के अधिकारियों पर भी माफिया ने हमला किया है।

भोपाल। मध्यप्रदेश में खनिज माफिया किस कदर सरकार पर भारी है इसकी बानगी मुरैना जिले में हुई आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की हत्या है, लेकिन इससे पहले तत्कालीन मुरैना कलेक्टर एवं वर्तमान में मुुुुुख्यमंत्री के अपर सचिव आकाश त्रिपाठी सहित अनेक पुलिस अधिकारी भी खनिज माफियाओं के शिकार हो चुके हैं। मुख्यमंत्री के अपर सचिव आकाश त्रिपाठी जिस वक्त मुरैना के कलेक्टर थे उस समय ये पहाड़ी खदान पर रेत माफियाओं को रोकने के लिए गए थे। इनके साथ खनिज अधिकारी सहित कई पुलिसकर्मी भी थे, लेकिन खनिज माफियाओं को इसकी सूचना पहले से मिल चुकी थी। जैसे ही अधिकारियों ने खदान माफियाओं को रोकने की कोशिश की तो इन पर उन्होंने फायरिंग कर दी। इसमें आकाश त्रिपाठी तो बाल-बाल बच गए, लेकिन एक खनिज अधिकारी पीसी वर्मा इनकी गोलियों से घायल हो गए थे।
पहले भी हो चुके हैं हमले:
    खनिज माफियाओं द्वारा पुलिस अधिकारियों पर पहले भी हमले होते रहे हैं। दिसंबर 2011 में रेत माफियाओं ने पुलिस द्वारा रेत की ट्राली रोके जाने पर हमला कर दिया। इसमें पुलिसकर्मी घायल भी हुए थे। हालांकि बाद में पुलिस ने टै्रक्टर सहित दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले भी वर्ष 2007 में पुलिस खनिज माफियाओं द्वारा हमले किए गए थे। ग्वालियर संभाग में रेत, गिट्टी, पत्थर सहित करीब 400 खदानें हैं। सूत्रों ने बताया कि इन खदानों में से ज्यादातर खदानें राजनीति में दखल रखने वाले रसूखदारों की है। ये लोग यहां धड़ल्ले से खनिज उत्खनन कर रहे हैं।
नकेल नहीं डाल पाये माफिया पर:
    बड़वानी कलेक्टर रहे संतोष मिश्रा के मामले में भी खनिज माफिया हावी रहा। माफियाओं पर नकेल डालने का परिणाम इन्हें भुगतना पड़ा और रातों-रात इनको वापस बुला लिया गया। अब ये मंत्रालय में कृषि विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। बड़वानी जिले में जब जब माफियाओं का फन-कुचलने की कोशिश हुई, तब-तब वह और ताकतवर होकर खड़ा हुआ। बड़वानी जिले के गठन और यहां पदस्थ कलेक्टरों की संख्या पर नजर डाली जाए तो यहां अभी तक 16 कलेक्टर हटाए जा चुके हैं, जबकि जिले के गठन के अभी 16 वर्ष नहीं हुए। यानि यहां कलेक्टरों का औसत कार्यकाल एक वर्ष से ही कम रहा। इसमें संतोष मिश्रा अपवाद माने जा सकते हैं, क्योंकि ये डेढ़ वर्षों तक रहे। इस दौरान इन्होंने खनिज माफिया पर नकेल डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वित्तीय वर्ष की समाप्ति के आखिरी तीन महीनों यानि जनवरी से मार्च 2011 तक यहां सबसे ज्यादा कार्यवाही हुई। राजस्व आय जो 4 से 5 करोड़ के बीच थी, वह बढक़र 42 सेे 43 करोड़ रूपए हो गई। अवैध खदान नष्ट करने और खनन के उपयोग में लाई जा रही मशीनों, डंफर इत्यादि जब्त किए जाने के मामले में खूब तूल पकड़ा। कलेक्टर को हटाए जाने के लिए मुख्यमंत्री पर भी दवाब रहा।
विवादों में सेंधवा नाका:
    जिले के सेंधवा नाका में प्रतिदिन 2 लाख की उगाही लंबे समय से चल रही थी। कलेक्टर रहते हुए मिश्रा ने इसे सख्ती से हटाया। इससे माफिया की तो कमर ही टूट गई। नाका हटने और अवैध खनन पर लगाम लगने का परिणाम यह रहा कि मिश्रा को रातों-रात हटा दिया गया। कलेक्टर कॉफ्रेंस के एक दिन पहले मिश्रा को हटाए जाने के निर्णय की प्रशासनिक हलकों में तीखी प्रतिक्रिया हुई। चंद दिनों पहले महिला आईएएस रेनु तिवारी को जिले की कमान सौंपी गई, लेकिन इन्हें भी वापस बुला लिया गया।
माफिया ने घेर लिया था:
    जान हथेली पर लिए कलेक्टरी करने वाले मिश्रा के कार्यकाल का एक किस्सा क्षेत्र में आज भी चर्चित है। खनिज माफिया को एडीएम ने अपनी टीम के साथ घेराबंदी का प्रयास किया तो माफिया ने अफसरों को घेर लिया। इसकी सूचना मिलने पर कलेक्टर पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। दोनों पक्षों से हुई गोलीबारी के बाद अफसर बमुश्किल वहां से बचकर निकले। हालांकि बाद में माफिया से जुड़े लोगों पर कार्यवाही हुई।
विधानसभा में गूंजेगा हत्या का मामला:
    खनिज माफिया के खिलाफ अभियान चलाने वाले आईपीएस अफसर नरेंद्र कुमार की हत्या का मामला विधानसभा में भी उठेगा। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने कहा कि प्रदेश में अपराधियों के हौंसले इतने बुलंद हो गए हैं कि उन्हें अब पुलिस और सरकार का कोई भय नहीं है। जांबाज आईपीएस नरेंद्र कुमार की हत्या के बाद से आम जनता की ओर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस सवाल का जवाब जानना चाहता हूॅं कि राज्य में सरकार है या नहीं ? आईपीएस की हत्या का हमें गहरा दुख है। कानून व्यवस्था गुंडों के हाथों में चली गई है। नरेंद्र की कुर्बानी को यूं ही जाया नहीं जाने देंगे। केंद्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने घटना पर दुख प्रकट करते हुए पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। सिंधिया अपने संसदीय क्षेत्र के दौरे पर हैं। स्थानीय मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि प्रदेश में खनिज माफिया सक्रिय है।
एसआई से बदसलूकी:
    होली के दोपहर सुरक्षा इंतजामों का जायजा ले रहे एक एसआई टीसी मेहरा को उस समय बदसलूकी का सामना करना पड़ा जब वे नशे में धुत्त नारायण सिंह लोधी को रोकर पूछताछ कर रहे थे। समझाइश देने पर उसने एसआई के साथ झूमाझपटी की। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ शासकीय कार्य में बाधा डालने का मामला दर्ज कर लिया है।
आरक्षक की मौत:
    मंडलेश्वर में गश्त के दौरान आरक्षक 614 रघुनाथ एएसआई बीडी गोयल के साथ ग्रामीण इलाके में गश्त कर रहे थे। इसी दौरान प्लांट पर दिखे कुछ संदिग्ध लोगों को इन्होंने पूछताछ के लिए रोका, इसी बीच आरोपियों ने धारदार हथियार से हमला बोल दिया। हादसे में आरक्षक की घटनास्थल पर ही मौत हो गई, जबकि एएसआई गंभीर रूप से घायल है। पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया है।

सरकार की इच्छा शक्ति के अभाव से विपक्ष को घर बैठे मौका



राज्य की लगातार पटरी से उतर रही कानून व्यवस्था और फैलते भ्रष्टाचार ने भाजपा सरकार की नींद उड़ा दी है। पहले महिलाओं के साथ गैंगरेप, फिर पत्रकारों की हत्या और अब खनिज माफिया द्वारा आईपीएस अफसर की हत्या से कानून व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। बार-बार भले ही मुख्यमंत्री दावा करें कि सख्त कार्यवाही की जायेगी, लेकिन लोगों का विश्वास सरकार पर से उठता जा रहा है। भाजपा सरकार के लिए बिगड़ती कानून व्यवस्था के साथ-साथ फैलता भ्रष्टाचार का नासूर भी सिरदर्द बन गया है।
भोपाल। चाल,चरित्र और चेहरे का राग अलापने वाली प्रदेश की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने लगातार अवंाछित घटनाओं से संगठन के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। एक के बाद एक सामने आ रहे भ्रष्टाचार के मामले और कानून व्यवस्था ने भाजपा को कटघरे में खड़ा कर दिया है।  सरकार इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए है। पिछले दो महीने में भ्रष्टाचार के अनेक ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें आयकर व लोकायुक्त की छापामार कार्यवाही के दौरान अधिकारी तो अधिकारी चपरासी के घर से करोड़ों रूपए निकले हैं। 11 मार्च को होने वाली चुनाव समिति की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हो सकती है। चुनाव समिति के सदस्य ही कोर गु्रप के भी सदस्य हैं, इसलिए मुख्यमंत्री की मौजूदगी में संगठन इस पूरे मामले पर चर्चा कर सकता है।
मिशन की तैयारी और उठते सवाल:
    भाजपा मिशन 2013 की तैयारी में जुटी है, लेकिन पिछले दो महीनों में भ्रष्टाचार के जितने मामले सामने आए हैं, उससे भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा की लड़ाई कमजोर हुई है, तो वहीं सरकार के रवैये पर भी सवालिया निशान लगा हुआ है। जितने भी अधिकारियों के घर पर आयकर व लोकायुक्त के छापे पड़े, उन अधिकारियों के खिलाफ सरकार ने सख्त कार्यवाही नहीं की है। पिछले दो माह में एक दर्जन से अधिक अधिकारियों के घर पर छापे पड़ चुके हैं। पिछले विधानसभा सत्र में विपक्ष द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव में जिन मुद्दों को उठाया गया था, उनमें से ज्यादातर मामले अब सामने आ रहे हैं।
माफिया के आगे बेबस सरकार:
    खनिज माफिया के आगे सरकार की बेबसी और सत्तारूढ़ दल के विधायक व नेताओं का इन्हें संरक्षण किसी से छिपा नहीं है।  08 मार्च को एक आईपीएस अधिकारी की मौत के पीछे भी खदान माफिया से जुड़े लोगों का हाथ बताया जा रहा है। यही नहीं भाजपा के एक विधायक का भी नाम सामने आ रहा है। शेहला मसूद हत्याकांड में भी सीबीआई ने भाजपा नेता को क्लीनचिट नहीं दी है। कांग्रेस ने हाल ही में मुख्यमंत्री के परिवार के लोगों द्वारा कृषि भूमि पर कॉलोनी काटने के मामले को उजागर किया था। भाजपा के लिए यह पूरे मामले सिरदर्द बन गए हैं।
विपक्ष के पास बैठे बिठाये मौका:
पार्टी नेताओं का कहना है कि सरकार भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करने में ढुलमुल रवैया अपनाए हुए है और यह मामले आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस को सरकार और भाजपा को घेरने का बैठे-बिठाएं मौका मिल रहा है। कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान जिन मुद्दों को उठाया था, सरकार उनका जवाब नहीं दे पाई थी। सदन में अविश्वास प्रस्ताव तो गिर गया, लेकिन इस पूरे मामले से सरकार और भाजपा को उबरने में दो महीने से अधिक का समय लग गया था। कांग्रेस ने कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के मामले को तूल दिया तो सरकार और भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएगी। भाजपा इन सभी मामलों में जवाब देने से बच रही है, तो सरकार के मुखिया और मंत्री भी हर मामले में जांच की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं।
क्या कहते हैं नेता:
-    हर मामले में सख्त कार्यवाही होगी। - शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश।
-    सरकार अपना काम कर रही है। - प्रभात झा, प्रदेशाध्यक्ष भाजपा
-    भाजपा सरकार भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। कानून व्यवस्था खत्म हो गई है। - अजय सिंह, नेता प्रतिपक्ष।



Mar 9, 2012

मध्यप्रदेश में मनमाना माफियाराज ?


माफिया के फैलते पैर और दुस्साहसी हौसलो ने पुलिसकर्मियों और अधिकारियों की नींद उड़ा दी है। अब मध्यप्रदेश में कानून के रखवाले ही सुरक्षित नहीं है। माफिया दिनों-दिन ताकतवर होता जा रहा है। आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की खनिज माफिया द्वारा हत्या कर देने के बाद कई सवाल पुलिस की भूमिका के साथ साथ सरकार के कामकाज पर भी खड़े हो गये हैं। यूं तो मध्यप्रदेश में पुलिसकर्मियों पर हमले की घटनाएं अब सामान्य बातें होती जा रही हैं।
भोपाल। अपराधियों के दुस्साहसी हमले इस तथ्य को और भी पुष्ट करते नजर आ रहे हैं कि मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार आने के बाद से माफिया लगातार फलफूल रहा है। हर क्षेत्र में माफिया ने अपनी दखलांदाजी बढ़ा दी है जिसके फलस्वरूप माफिया खुलकर सरकारी कामकाजों में हस्तक्षेप कर रहा है। इन दिनों सबसे ज्यादा भू-माफिया और खनिज माफियाओं के हौसले बुलंद हैं । सरकारी जमीनों पर कब्जे करने की कई घटनाएं सामने आ चुकी है। इसके साथ ही प्राकृतिक संसाधन को नेस्तानाबूत करने के लिए खनिज माफिया लगातार सक्रिय है। प्रदेश में चारों तरफ खदानों से अवैध उत्खनन खुलकर हो रहा है। विशेषकर जबलपुर, कटनी, दमोह, भोपाल, सतना, रीवा, ग्वालियर, मुरैना, टीकमगढ़ व छतरपुर आदि क्षेत्रों में तो खनिज माफिया दिन-रात अवैध उत्खनन में जुटा हुआ है। इन्हें रोकने के लिए जो भी प्रयास करता है। उसे किसी न किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। दिसंबर 2011 में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भू-माफिया के साथ-साथ खनिज के अवैध उत्खनन के मामले को जोर-शोर से उठाया था। तब सरकार ने इन्हें सिरे से नकार दिया था,नदियों के किनारे से रेतों के अवैध उत्खनन के मामले तो आये दिन अखबारों की सुर्खिया बन रहे हैं। नर्मदा नदी के किनारे तो  शिवा कार्पोरेशन कंपनी अवैध रूप से रेतों का उत्खनन कर रही है,परंतु सरकार इसे नही देखना चाहती है।
खनन माफिया ने जान ली आईपीएस अफसर की:
    मध्यप्रदेश में एक जाबांाज और ईमानदार आईपीएस अफसर नरेंद्र कुमार की 08 मार्च, 2012 को मुरैना के बानमोर में खनिज माफिया ने हत्या कर दी। यह अफसर होली के दिन ट्रैक्टर-ट्रॉली को रोकने के लिए अकेले ही पहुंच गये। टै्रक्टर-ट्रॉली में अवैध रूप से पत्थर भरे हुए थे, जब आईपीएस अफसर ने इस टै्रक्टर-ट्रॉली को रोकने की कोशिश की तो ड्राईवर ने ट्रॉली को ही पलट दिया जिसके फलस्वरूप अफसर पत्थरों में दब गये और बाद में उन्हें ग्वालियर ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई। नरेंद्र कुमार वर्ष 2009 बैंच के आईपीएस अफसर हैं और उन्हें बानमोर एसडीओपी के रूप में पदस्थ किया गया था। उनकी पत्नी मधुरानी भी एमपी कैडर की आईएएस अफसर हैं, जो कि इन दिनों दिल्ली में मेटरनल लीव पर है। इस पूरे मामले में यह नहीं लग पा रहा है कि आखिरकार यह अवैध पत्थर का मालिक कौन है। सूत्रों का कहना है कि नरेंद्र कुमार इस अवैध उत्खनन को रोकने के लिए बार-बार कोशिश कर रहे थे और वे कई बार इस टै्रक्टर-ट्रॉली को जप्त कर चुके थे, लेकिन हर बार पुलिस थाना इस टै्रक्टर-ट्रॉली को छोड़ देता था। इस पर पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि जब होली के दिन नरेंद्र कुमार ने मुरैना एसपी से फोर्स मांगी तो उन्हें फोर्स भी उपलब्ध नहीं कराई गई।
खनिज माफिया बनाम सियासत:
    मध्यप्रदेश में खनिज माफिया को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच लंबे समय से सियासत हो रही है। बार-बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कह रहे हैं कि वे खनिज माफिया के खिलाफ कार्यवाही कर रहे हैं, लेकिन कार्यवाही कहा हो रही है इसका पता किसी को नहीं चल रहा है। विपक्ष भी लगातार खनिज माफिया के खिलाफ हल्ला बोल रहा है। इसके बाद भी सरकार ने खनिज माफिया को लेकर कोई बड़ी कार्यवाही अभी तक नहीं की है। एकबार फिर विपक्ष आक्रमक तेवर अख्तियार किये हुए है। प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष मानक अग्रवाल कहते हैं कि हर हाल में खनिज माफिया के खिलाफ सरकार को कार्यवाही करना चाहिए, लेकिन सरकार की सांठगांठ के कारण माफिया फलफूल रहा है। वही गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता का मानना है कि सरकार खनिज माफिया के खिलाफ लगातार कार्यवाही कर रही है और उसी का परिणाम है कि एक आईपीएस अफसर शहीद हो गया।

Feb 27, 2012

कृषि बजट के पहले ही कंगाल हुए कृषि विवि



मध्यप्रदेश का कृषि व्यवसाय दिनों-दिन पटरी से उतर रहा है। हताश और निराश हो चुके किसान सरकार की नीतियों से परेशान हो गये हैं जिसके चलते वे आत्महत्या करने पर भी विवश हो रहे हैं। मप्र के किसानों के आत्महत्या का आलम यह है कि हर साल आत्महत्या का ग्राफ बढता ही रहा है। इसके बाद भी यह सच है कि राज्य में गेहूं का उत्पादन इस बार रिकार्ड तोडऩे वाला है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार 100 लाख मीट्रिक टन के गेहूं की बंपर उत्पादन होने की संभावना है जिसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है। वही कृषि शिक्षा और शोध को अग्रणी रखने वाले कृषि विवि मे वेतन और पेंशन के लाले पड़ रहे हैं।
भोपाल। कृषि क्षेत्र को बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए कृषि शिक्षा में लाखों, करोड़ों रूपये हर साल केंद्र सरकार और राज्य सरकारें खर्च कर रही हैं। इससे उलट मप्र की कृषि शिक्षा को अग्रणी रखने वाले कृषि विश्वविद्यालय को राशि के लिए मुंह ताकना पड़ रहा है। विवि के अधिकारी कई बार राजधानी आकर सरकार के सामने झोली फैला चुके हैं। प्रदेश में ग्वालियर स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के जरिए भले ही बड़े अनुसंधान और बेहतर छात्र दिए जा रहे हों, लेकिन उसकी माली हालत बिगड़ती जा रही है। बदहाली का आलम यह है कि अब वेतन और पेंशन देने के लाले पड़ गए हैं। विवि का विखंडन हो जाने के बाद तो स्थिति और ज्यादा बिगड़ी है। वित्त से त्रस्त हो चुके विवि के पास खर्च तो रूपये का है, लेकिन आमदनी चवन्नी की बनी हुई है। यहां तक कि विवि के अधिकतर पद प्रभारियों के भरोसे ही चलाए जा रहे हैं। उन्हें भरने के बाद वेतन देने की समस्या से जूझने की हिम्मत भी नहीं बची है।
लगातार बढ़ रहा है घाटा:
    विवि की स्थापना वर्ष 1964 में की गई। तब से लेकर अब तक साल-दर-साल घाटे की चादर ने पैर पसारने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। खुलने से लेकर 19 दिसंबर, 2011 तक विवि का घाटा एक अरब 24 करोड़ तक जा पहुंचा है। इसके लिए राज्य सरकार की ओर से सहायता के प्रयास विफल ही माने जा रहे हैं।
बंट गई खुद की आमदनी:
    कृषि विवि को विखंडित करते हुए ग्वालियर में एक नया कृषि विवि खोला गया। इसके साथ ही जबलपुर में वेटरनरी विवि की स्थापना की गई। दो विस्तार हो जाने से कृषि विवि की खुद के स्त्रोतों से होने वाली आमदनी आधी से भी कम हो गई। वर्तमान में सालाना 6 करोड़ की आय विवि अपने फार्म और अन्य जगहों से अर्जित कर रहा है, लेकिन विखंडन से पहले यह आय सालाना 18 करोड़ रूपये हुआ करती थी। इसमें बची हुई आय के स्त्रोत अब वेटरनरी विवि और ग्वालियर कृषि विवि के खाते में जा पहुंचे हैं।
विवि में खर्च ज्यादा, लाभ कम:
कृषि विवि को हर महीने 5 करोड़ रूपये वेतन और पेंशन के लिए चुकाने पड़ रहे हैं। इसमें एक करोड़ 50 लाख रूपये पेंशन के लिए और 3 करोड़ वेतन में दिया जा रहा है, लेकिन वेतन और पेंशन देने के लिए राशि समय पर नहीं मिल रही है। आईसीएआर यानि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अपने प्रोजेक्ट और उसमें काम करने वाले कर्मचारियों के लिए 34 करोड़ 30 लाख रूपए दे रहा है, लेकिन इस राशि का उपयोग कभी न कभी वेतन बांटने के लिए करना ही पड़ रहा है, जिससे परियोजनाओं की चाल भी धीमी होती जा रही है। वित्त की समस्या को सुलझाने पिछले तीन सालों में दर्जनों दफा राज्य सरकार स्तर पर चर्चाएं और बैठकों का आयोजन किया गया, लेकिन नतीजा अब तक नहीं निकाला जा सका है।
हर महीने हाय-तौबा:
    प्राप्त जानकारी के अनुसार, पेंशन के लिए पिछले महीनों में 10 करोड़ रूपये देने का वायदा किया गया, लेकिन अभी तक यह राशि स्वीकृत नहीं की जा सकी। कृषि विवि के अधीन आने वाले महाविद्यालयों में भी कर्मचारी हर महीने वेतन को लेकर, तो पेंशनर्स अपनी पेंशन के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। निष्ठावान जनप्रतिनिधियों की ओर से विधानसभा में उठाए जा रहे सवालों के बाद जवाब भी दिए जाते रहे हैं, लेकिन अभी तक विवि प्रबंधन कर्मचारियों के लिए छठवें वेतनमान का एरियर्स और अन्य भुगतान करने में सक्षम नहीं हो सका है।
विवि और कृषि:
    राज्य सरकार दे रही: 30 करोड़ 27 लाख 94 हजार रूपये सालाना
    विवि को चाहिए: 92 करोड़ 58 लाख 27 हजार रूपये सालाना
    वर्ष 2011-12 में शुद्व घाटा: 55 करोड़ 53 लाख 57 हजार सालाना
    1964 से 2011 तक घाटा: 1 अरब 24 करोड़